गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

क्‍यूं मनाया जाता है धनतेरस और क्‍या है इसकी कहानी

हिंदू धर्म में धनतेरस का त्‍यौहार, कार्तिक माह के तीसरे दिन मनाया जाता है, जो दीवाली पर्व की शुरूआत माना जाता है। इस दिन, हिंदू परिवारों में मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है।


धनतेरस के पावन पर्व पर, हिंदू परिवारों में कोई भी नया बर्तन खरीद कर लाया जाता है या चांदी अथवा सोने का सिक्‍का लाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन नए बर्तन या सिक्‍के को खरीद कर लाने और पूजा करने से घर में लक्ष्‍मी की बारिश होती है और घर में खूब धन-धान्‍य आता है।

धनतेरस पर मां लक्ष्‍मी के साथ-साथ भगवान कुबरे की भी पूजा की जाती है। इस दिन से ही दीवाली की शुरूआत हो जाती है। आइए जानते है कि धनतेरस का क्‍या महत्‍व है:


धनतेरस की दंतकथा

धनतेरस के बारे में दो दंतकथाएं है। ऐसा माना जाता है‍ कि समुद्र मंथन के दौरान, समुद्र से निकलने वाले नौ रत्‍नों में इसी दिन वैद्य धन्‍वतर का जन्‍म हुआ था। इस त्‍यौहार को हिंदू धर्म में बड़े त्‍यौहार के रूप में जाना जाता है।
धनतेरस के बारे में दूसरी कहानी ये है कि एक 16 वर्ष का राजकुमार था, जिसे हिमा के नाम से जाना जाता था। उसकी कुंडली में लिखा था कि उसकी शादी के चौथे दिन उसकी सांप काटने से मृत्‍यु हो जाएगी। राजुकमार की शादी हुई और उसी दिन उसकी पत्‍नी ने एक चाल खेली, उसने अपने सारे जेवरात और गहने उतार कर दरवाजे के आसपास फैला दिए और चौखट पर चांदी और सोने के सिक्‍के रखें, सभी जगहों पर तेज रोशनी कर दी। उसके बाद उसने अपने पति को सोने से बचाने के लिए कहानी सुनानी शुरू कर दी। यम आएं और कमरे में गहनों की चकाचौंध से सांप के रूप में बनने के बाद भी उसे डस नहीं पाएं। उस सांप की आंखे चमक के कारण खुल नहीं पाई और वह उसे काट नहीं पाया। रात भर वह दरवाजे पर बैठा रहा और उसकी पत्‍नी की कही हुई कहानी को सुनता रहा। सुबह होते ही सांप वापस चला गया और राजकुमार बच गया।
 धनतेरस का महत्‍व 
व्‍यापारियों के लिए धनतेरस का बहुत बड़ा महत्‍व होता है। इस दिन नई किताबें, सामान आदि खरीदा जाता है। कई लोग नए पेशे को भ इस दिन शुरू करना शुभ मानते हैं। कई परिवारों में धनतेरस के दिन बेटी का जन्‍म शुभ माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि उनके घर में लक्ष्‍मी मां का जन्‍म हुआ।
Source -hindi.boldsky

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

अनरसे - Anarsa Recipe

दीपावली का विशेष व्यंजन अनरसे (Anarse) है, सामान्यतया यह उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है , अनरसे बनाने के लिये 2 दिन पहले चावल भिगोने पड़ते हैं. 
आइये अनरसे बनाना शुरू करते हैं.


आवश्यक सामग्री 

  • छोटा चावल - 300 ग्राम ( 1 1/2 कप )
  • पाउडर चीनी - 100 ग्राम ( आधा कप )
  • दही या दूध - 1 टेबल स्पून
  • घी - 2 टेबल स्पून
  • तिल -2 टेबल स्पून
  • तलने के लिये - घी

विधि 

छोटे, नये चावल ले लीजिये, चावलों को साफ कीजिये, धोइये और भिगो दीजिये. चावल 3 दिनों तक भीगे रखने हैं लेकिन 24 घंटे बाद पानी बदल दीजिये.
अब चावलों में से पानी निकाल दीजिये, चावलों को किसी साफ मोटे सूती कपड़े के ऊपर छाया में फैला दीजिये, 1 या 1 1/2 घंटे में चावलों का पानी सूख जाता है(चावल पूरी तरह नहीं सूखने चाहिये वे नम ही रहें).
इन चावलों को मिक्सी से मोटा आटे जैसा पीस कर एक बर्तन में निकाल लीजिये,  आटे को छ्लनी में छाना जा सकता है. चीनी पाउडर, चावल का पिसा आटा और घी को अच्छी तरह मिलाइये. दही को मथ कर या दूध चम्मच से थोड़ा डालिये और इस मिश्रण को इसी दही या दूध की सहायता से सख्त आटे की तरह गूथ लीजिये. आटे को 10 - 12  घंटे के लिये ढक कर रख दीजिये, आटा नरम हो कर सैट हो जाता है.
कढ़ाई में घी डाल कर गरम कीजिये(कढ़ाई में घी इतना डालिये कि अनरसे अच्छी तरह डुब कर तले जा सकें).
गोल अनरसे बनाने के लिये आटे से छोटी छोटी लोइयां लेकर, तिल में लपेट कर, गोल करके, 4-5 अनरसे कढ़ाई में डालिये, करछी से हिला डुला कर ब्राउन होने तक तल लीजिये, तले हुये अनरसे प्लेट में नैपकिन पेपर बिछा कर रखिये और अनरसे बनाकर फिर से घी में डालिये इन्हैं भी तल कर निकाल लीजिये, इसी तरह सारे आटे से अनरसे बनाकर तैयार कर लीजिये. गरमा गरम अनरसे तैयार हैं.
चपटे अनरसे के लिये आटे से छोटी छोटी लोइयां बनायें, तिल में लपेटे, फिर से गोल करें तिल आटे में पूरी तरह चिपक जायं, अब हथेली से दबाकर चपटा कीजिये,  गरम घी में डालिये, एक बार में 2-3 -4 अनरसे बना कर घी में डाल दीजिये, अनरसे के ऊपर गरम घी उछाल कर, या हल्के हाथ से पलट कर, हल्का ब्राउन होने तक तल लीजिये. तले हुये अनरसे प्लेट में नेपकिन पेपर बिछाकर, निकाल कर रखिये. दूसरे अनरसे बनाकर फिर से घी में डालिये और तल कर निकाल लीजिये, इसी तरह सारे आटे से अनरसे बनाकर तैयार कर लीजिये. लीजिये गरमा गरम अनरसे तैयार हैं.
आप इन अनरसों को अभी खाइये बहुत स्वादिष्ट बने हैं. ठंडे होने पर कन्टेनर में भरकर रख दीजिये और फिर 15 दिन तक कभी भी खाइये.

रविवार, 16 अक्टूबर 2016

करवा चौथ की पूजन विधि और व्रत कथा

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विर्ण वामन पुराण में किया गया है।


करवा चौथ पूजा विधि

नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।

पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए।

चन्द्रोदय समय 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन बिना चन्द्रमा को अर्घ्य दिए व्रत तोड़ना अशुभ माना जाता है। वर्ष 2016 में पूजा और चन्द्रमा निकलने का समय निम्न है:

साल 2016 में करवा चौथ के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त : शाम 05 बजकर 43 मिनट से लेकर 06 बजकर 59 मिनट तक

करवा चौथ के दिन चंद्रोदय: रात 08.51 बजे

महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी।

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।

साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।

इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।

कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

कमजोरी मिटाने में नंबर 1 है, ये 10 घरेलू ड्रिंक

दिनभर की भागदौड़ और सही डाइट न लेने के कारण अक्सर थकान और कमजोरी हो जाती है। इसे दूर करने के लिए घर में ही कुछ ऐसी चीजें मौजूद होती हैं, जिन्हें सही तरीके यूज करके कमजोरी को दूर किया जा सकता है। यहां नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद, जयपुर के डॉ. गोविंद पारिकबता रहे हैं कमजोरी दूर करने में मददगार ऐसी 10 घरेलू ड्रिंक्स के बारे में।


खांसी, जकड़न और सर्दी को दूर भगाने वाला घरेलू उपचार




Benefits of Jeera (Cumin) | जीरा खाने का स्‍वास्‍थ्‍य लाभ





Source - bhaskar