सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

पति पत्नी

जोक्स


Kashmeer ka Mudda



Kashmeer ka Mudda



एक बार संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को ले कर चर्चा चल रही थी।

एक भारतीय प्रवक्ता बोलने के लिए खड़ा हुआ। अपना पक्ष रखने से पहले उसने ऋषि कश्यप की एक बहुत पुरानी कहानी सुनाने की अनुमति माँगी। अनुमति मिलने के बाद भारतीय प्रवक्ता ने अपनी बात शुरू की...
"एक बार महर्षि कश्यप, जिनके नाम पर आज कश्मीर का नाम पड़ा है, घूमते-घूमते कश्मीर पहुंच गए।
वहाँ उन्होंने एक सुन्दर झील देखी तो उस झील में उनका नहाने का मन हुआ।
उन्होंने अपने कपड़े उतारे और झील में नहाने चले गए।
जब वो नहा कर बाहर निकले, तो उनके कपड़े वहाँ से गायब मिले।
दरअसल, उनके कपड़े किसी पाकिस्तानी ने चुरा लिये थे..."
इतने में पाकिस्तानी प्रवक्ता चीख पड़ा और बोला:
"क्या बकवास कर रहे हो? उस समय तो 'पाकिस्तान' था ही नहीं!!!"
भारतीय प्रवक्ता मुस्कुराया और बोला:
"और ये पाकिस्तानी कहते हैं कि कश्मीर इनका है!!!"  
इतना सुनते ही... पूरा संयुक्त राष्ट्र सभा ठहाकों की गूंज से भर उठा।।
एक हिन्दुस्तानी होने के नाते यह वाकया मुझे बहुत पसंद आया।
यदि पसंद आए तो आप भी इसे अपने दोस्तों के साथ ज़रूर शेयर करें।

आखिर पाया तो क्या पाया? (काव्य)

रचनाकार: हरिशंकर परसाई 






जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा
जब थाप पड़ी, पग डोल उठा
औरों के स्वर में स्वर भर कर
अब तक गाया तो क्या गाया?

सब लुटा विश्व को रंक हुआ
रीता तब मेरा अंक हुआ
दाता से फिर याचक बनकर
कण-कण पाया तो क्या पाया?

जिस ओर उठी अंगुली जग की
उस ओर मुड़ी गति भी पग की
जग के अंचल से बंधा हुआ
खिंचता आया तो क्या आया?

जो वर्तमान ने उगल दिया
उसको भविष्य ने निगल लिया
है ज्ञान, सत्य ही श्रेष्ठ किंतु
जूठन खाया तो क्या खाया?

मिट्ठू (बाल-साहित्य)


रचनाकार: मुंशी प्रेमचंद 



बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है।

कुछ दिन हुए लखनऊ में एक सरकस-कंपनी आयी थी। उसके पास शेर, भालू, चीता और कई तरह के और भी जानवर थे। इनके सिवा एक बंदर मिट्ठू भी था। लड़कों के झुंड-के-झुंड रोज इन जानवरों को देखने आया करते थे। मिट्ठू ही उन्हें सबसे अच्छा लगता। उन्हीं लड़कों में गोपाल भी था। वह रोज आता और मिट्ठू के पास घंटों चुपचाप बैठा रहता। उसे शेर, भालू, चीते आदि से कोई प्रेम न था। वह मिट्ठू के लिए घर से चने, मटर, केले लाता और खिलाता। मिट्ठू भी उससे इतना हिल गया था कि बगैर उसके खिलाए कुछ न खाता। इस तरह दोनों में बड़ी दोस्ती हो गयी।

एक दिन गोपाल ने सुना कि सरकस कंपनी वहां से दूसरे शहर में जा रही है। यह सुनकर उसे बड़ा रंज हुआ। वह रोता हुआ अपनी मां के पास आया और बोला, अम्मा, मुझे एक अठन्नी1 दो, मैं जाकर मिट्ठू को खरीद लाऊं। वह न जाने कहां चला जायेगा ! फिर मैं उसे कैसे देखूंगा ? वह भी मुझे न देखेगा तो रोयेगा।


मां ने समझाया, बेटा बंदर किसी को प्यार नहीं करता। वह तो बड़ा शैतान होता है। यहां आकर सबको काटेगा, मुफ्त में उलाहने सुनने पड़ेंगे।

लेकिन लड़के पर मां के समझाने का कोई असर न हुआ। वह रोने लगा। आखिर मां ने मजबूर होकर उसे एक अठन्नी निकालकर दे दी।


अठन्नी पाकर गोपाल मारे खुशी के फूल उठा। उसने अठन्नी को मिट्टी से मलकर खूब चमकाया, फिर मिट्ठू को खरीदने चला लेकिन मिट्ठू वहां दिखाई न दिया। गोपाल का दिल भर आया-मिट्ठू कहीं भाग तो नहीं गया? मालिक को अठन्नी दिखाकर गोपाल बोला, क्यों साहब, मिट्टू को मेरे हाथ बेचेंगे ?
मालिक रोज उसे मिट्ठू से खेलते और खिलाते देखता था। हंसकर बोला, अबकी बार आऊंगा तो मिट्ठू को तुम्हें दे दूंगा।

गोपाल निराश होकर चला आया और मिट्ठू को इधर-उधर ढूँढ़ने लगा। वह उसे ढूंढ़ने में इतना मगन था कि उसे किसी बात की खबर न थी। उसे बिलकुल न मालूम हुआ कि वह चीते के कठघरे के पास आ गया था। चीता भीतर चुपचाप लेटा था। गोपाल को कठघरे के पास देखकर उसने पंजा बाहर निकाला और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा। गोपाल तो दूसरी तरफ ताक रहा था। उसे क्या खबर थी कि चीते का पंजा उसके हाथ के पास पहुंच गया है ! करीब था कि चीता उसका हाथ पकड़कर खींच ले कि मिट्ठू न मालूम कहां से आकर उसके पंजे पर कूद पड़ा और पंजे को दांतों से काटने लगा। चीते ने दूसरा पंजा निकाला और उसे ऐसा घायल कर दिया कि वह वहीं गिर पड़ा और जोर-जोर से चीखने लगा।

मिट्ठू की यह हालत देखकर गोपाल भी रोने लगा। दोनों का रोना सुनकर लोग दौड़े, पर देखा कि मिट्ठू बेहोश पड़ा है और गोपाल रो रहा है। मिट्ठू का घाव तुरंत धोया गया और मरहम लगाया गया। थोड़ी देर में उसे होश आ गया। वह गोपाल की ओर प्यार की आंखों से देखने लगा, जैसे कह रहा हो कि अब क्यों रोते हो ? मैं तो अच्छा हो गया!

कई दिन मिट्ठू की मरहम-पट्टी होती रही और आखिर वह बिल्कुल अच्छा हो गया। गोपाल अब रोज आता और उसे रोटियां खिलाता।

आखिर कंपनी के चलने का दिन आया। गोपाल बहुत रंजीदा था। वह मिट्ठू के कठघरे के पास खड़ा आंसू-भरी आंखों से देख रहा था कि मालिक ने आकर कहा, अगर तुम मिट्ठू को पा जाओ तो उसका क्या करोगे ?

गोपाल ने कहा, मैं उसे अपने साथ ले जाऊंगा, उसके साथ-साथ खेलूंगा, उसे अपनी थाली में खिलाऊंगा, और क्या!

मालिक ने कहा, अच्छी बात है, मैं बिना तुमसे अठन्नी लिए ही इसे तुम्हारे हाथ बेचता हूं।

गोपाल को जैसे कोई राज मिल गया। उसने मिट्ठू को गोद में उठा लिया, पर मिट्ठू नीचे कूद पड़ा और उसके पीछे-पीछे चलने लगा। दोनों खेलते-कूदते घर पहुंच गये।

बजट 2016-2017

बजट Highlights






नई दिल्ली. अरुण जेटली ने सोमवार को पेश आम बजट 'छोटे' टैक्स पेयर्स के नाम किया, लेकिन राहत 'मामूली' दी। अब छोटी-बड़ी कारें, सिगरेट, गोल्ड ज्वैलरी महंगी हो जाएंगी। मोबाइल, लैपटॉप, डायलिसिस इक्विपमेंट्स सस्ते हो जाएंगे। एनडीए सरकार के तीसरे बजट में गरीब तबके और किसानों को सबसे ज्यादा राहत दी गई। इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया। सुपर रिच टैक्स बढ़ा दिया गया है। उधर, बजट स्पीच के दौरान गिरा शेयर मार्केट बाद में संभल गया। बजट 2016 स्पीच के हाईलाइट्स...




सर्विस टैक्स बढ़ने से हर तरह की चीज हुई महंगी

- सर्विस टैक्स 14.5 से बढ़ कर 15% हुआ।
- सरकार कृषि कल्याण सेस लेगी।
- इससे फोन बिल, रेस्टोरेंट में खाना, ब्यूटी पॉर्लर जाना, बिल बेस्ड सभी सर्विसेस बढ़ेंगी, मूवी टिकट, हवाई सफर, रेल टिकट, केबल, बीमा पॉलिसी।
महंगा
- SUVs पर 4% सेस लगेगा, 10 लाख रुपए से ज्यादा की गाड़ियों पर 1 पर्सेंट का एक्स्ट्रा सरचार्ज।
- छाेटी कारों पर टैक्स 1 पर्सेंट और डीजल कारों पर 2.5 पर्सेंट टैक्स बढ़ाया गया है।
- बीड़ी छोड़कर सिगरेट, सिगार जैसे सभी टोबैको प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी 10 से बढ़ाकर 15 पर्सेंट हुई। 
- गोल्ड ज्वैलरी, रेडीमेड-ब्रांडेड कपड़े, हीरा, रत्न, कोयला।
सस्ता
- मोबाइल, डेस्कटॉप, लैपटॉप, टैबलेट।
- दिव्यांगों (हैंडिकैप्ड लोगों) की मदद से जुड़े इक्विपमेंट्स।
- डायलिसिस इक्विपमेंट्स।
टैक्स प्रपोजल
- इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव नहीं।
- पांच लाख रुपए सालाना से कम इनकम वालों के लिए टैक्‍स सिलिंग 2000 से बढ़ाकर 5000 रुपए।
- इस कैटेगरी में 2 करोड़ टैक्स पेयर्स आते हैं।
- जिनके पास अपना मकान नहीं हैं और जिन्हें इम्प्लॉयर से एचआरए नहीं मिलता, वे भी सालाना 24 हजार रुपए की छूट हासिल कर सकते हैं।
- विकलांगों के लिए उपकरण सस्ते किए जाएंगे। 
- पहली बार घर खरीदने पर ब्याज में 50 हजार की छूट। यह 50 लाख से कम के मकान पर होगी।
- एक करोड़ रुपए से ज्यादा आय वालों पर 12 की जगह 15 फीसदी सरचार्ज लगेगा। 
- 80जीबी के तहत हाउस रेंट छूट की सीमा 24 हजार से बढ़ाकर 60 हजार रुपए।
उद्योग
- सरकारी बैंकों को 25 हजार करोड़ रुपए का फंड।
- सरकारी बैंको में हिस्सेदारी 50% करने पर विचार।
- कंपनी अधिनियम 2013 में बदलवा होगा। 
- एक दिन में खुल सकेगी कंपनी। स्टार्टअप के लिए बड़ा एलान।
इन्फ्रास्ट्रक्चर

- 10 हजार किलोमीटर में नए हाईवे बनाएगी सरकार। इसके लिए 97 हजार करोड़ रुपए दिए जाएंगे। 
- 50 हजार किलोमीटर में नए स्टेट हाईवे बनाए जाएंगे। 
- हम परमिट राज को खत्म करने के लिए तेजी से काम करना चाहते हैं। 
- 160 एयरपोर्ट्स का विकास और आधुनिकीकरण किया जाएगा। 
- बुनियादी ढांचे के लिए 2 लाख करोड़ रुपए आवंटित। 
- हम राज्य हाईवे को नेशनल हाईवे के तौर पर विकसित करना चाहते हैं। इसलिए दो तरह के अलॉटमेंट किए गए हैं।
रोजगार और कर्मचारियों के लिए क्या?

- हाई एजुकेशन के विकास के लिए एक हजार करोड़ रुपए। 15 हजार बहु कौशल (मल्टी स्किल-हेफा) सेंटर खेलों जाएंगे। 
- एससी -एसटी एजुकेशन हब बनाए जाएंगे। 
- स्कूल - कॉलेज में अब डिजिटल सर्टिफिकेट दिए जाएंगे। 
- नए कर्मचारियों का पीएफ सरकार देगी। ये शुरू के तीन साल के लिए होगा। 
- इसके अलावा ईपीएफ का दायरा बढ़ाया जाएगा। एक हजार करोड़ रुपए का फंड देगी सरकार।
- मजदूरों के लिए काम के घंटे और छुट्टी का दिन भी तय किया जाएगा।
हेल्थ के लिए?
राष्ट्रीय डायलिसिस सेवा। हर सरकारी जिला अस्पताल में डायलिसिस होगा। डायलिसिस मशीन व पुर्जों के लिए सरकार कुछ छूट देगी। 
- डेढ़ करोड़ परिवारों को गैस कनेक्शन देंगे। ताकि गुर्दें की बीमारी भी कम हो सके। 
- स्टैंड अप योजना के तहत 500 करोड़ रुपए अलॉट। इससे ढाई लाख लोगों को फायदा होगा।
- 62 नए नवोदय विद्यालय खोले जाएंगे। 
- दवाओं के लिए तीन हजार दुकानें खुलेंगी। इन पर सस्ती दवाएं मिलेंगी। 
- स्वास्थ्य बीमा योजना में इलाज का खर्च मिलेगा।
सामाजिक क्षेत्र के लिए क्या?

- दो हजार करोड़ रुपए बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन के लिए। 
- महिलाओं के नाम से दिए जाएंगे एलपीजी कनेक्शन। 75 लाख लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ी है। 
- हेल्थ के लिए नई स्कीम। गरीबों को एक लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा।
- सभी जिला हॉस्पिटल में राष्ट्रीय डायलिसिस सेवा शुरू करेगी सरकार।
गांवों के लिए क्या?
- डेयरी उद्योग के लिए हम चार नई योजनाएं ला रहे हैं। इससे रोजगार और उत्पादन बढ़ेगा। 
- खेती के लिए कुल कर्ज 9 लाख करोड़ रुपए होगा। 
- मनरेगा के लिए 38 हजार 500 करोड़ रुपए अलॉट किए गए हैं। जो अब तक का सबसे बड़ा फंड है।
- 2.87 लाख करोड़ रुपए ग्रामीण पंचायतों को दिए जाएंगे। उनके अधिकार भी बढ़ाए जाएंगे। 
- एक मई 2018 तक देश के हर गांव में बिजली पहुंचा दी जाएगी।
- ग्रामीण भारत के लिए नई डिजिटल साक्षरता स्कीम। इसे डिजिटल इंडिया के अंतर्गत ही लाया जाएगा। 
- गांवों में बिजली के लिए 8500 करोड़ रुपए रखे जाएंगे। 
खेती के लिए क्या?

- किसानों की बेहतरी के लिए कुछ नए उपाय करने होंगे। 
- कमजोर वर्गों के लिए तीन नई स्कीम्स ला रहे हैं। 
- हमारी कोशिश टैक्स के मामलों मे सुधार करना है। 
- मनरेगा के तहत हम पांच लाख नए कुए बनाने जा रहे हैं। खासतौर पर सिंचाई के लिए। 
- तीन साल में पांच लाख एकड़ में जैविक खेती करने का लक्ष्य है। 
- कचरे से खाद बनाने की देश व्यापी स्कीम लाने की योजना है। 
- दालों की कीमतें काबू रखने और उत्पादन बढ़ाने के लिए 500 करोड़ रुपए का बजट अलग से रखा जाएगा।
- सिंचाई के लिए 20 हजार करोड़ रुपए अलग से रखे गए हैं। 15 हजार करोड़ किसानों को लोन में सहायता के लिए रखे गए हैं। 
- पीएम सड़क योजना 19 हजार करोड़ रुपए अलॉट किए गए हैं। 
- मंडी कानून में बदलाव करना चाहते हैं। ताकि किसानों को पूरा फायदा मिल सके। 
- गरीबो और किसानों के लिए स्वास्थय बीमा योजना लाएंगे। 
- देश में सड़कें बनाने का टारगेट 2019 तक पूरा कर लिया जाएगा।
किसानों के लिए क्या?

- प्रधानमंत्री किसान बीमा योजना से किसानों को फायदा हुआ है। पिछले तीन सालों में इसका असर भी नजर आया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में हमारी सरकार बेहतर सुविधाएं बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
- आधार प्लेटफॉर्म से जुड़े लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश की जा रही हैं। 
- बीपीएल फैमिलीज को कुकिंग गैस देने के लिए नई पॉलिसी लाई जा रही है। 
- 2016 का बजट 9 अलग-अलग पिलर्स को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। 
- एग्रीकल्चर पर फोकस रखने की कोशिश की जाएगी। 
- 2022 तक हम किसानों की कमाई दोगुनी करने की कोशिश कर रहे हैं । यही हमारा टारगेट है।
आधार के लिए अब कानून
- आधार कार्ड के लिए नया कानून बनाएंगे। हेल्थ, एजुकेशन पर फोकस करेंगे। 
- 35984 किसानों के लिए दिए जाएंगे।

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

शिव को प्रसन्‍न करने के लिए ........

शिव को प्रसन्‍न करने के लिए करें रुद्राभिषेक




महादेव को प्रसन्न करने का रामबाण उपाय है रुद्राभिषेक. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सही समय पर रुद्राभिषेक करके आप शिव से मनचाहा वरदान पा सकते हैं. क्योंकि शिव के रुद्र रूप को बहुत प्रिय है अभिषेक तो आइए जानते हैं, रुद्राभिषेक क्यों है इतना प्रभावी और महत्वपूर्ण....
रुद्राभिषेक की महिमा
भोलेनाथ सबसे सरल उपासना से भी प्रसन्न होते हैं लेकिन रुद्राभिषेक उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है. कहते हैं कि रुद्राभिषेक से शिव जी को प्रसन्न करके आप असंभव को भी संभव करने की शक्ति पा सकते हैं तो आप भी सही समय पर रुद्राभिषेक करिए और शिव कृपा के भागी बनिए...
- रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं.
- शिव जी की कृपा से सारे ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता है.
-शिवलिंग पर मंत्रों के साथ विशेष चीजें अर्पित करना ही रुद्राभिषेक कहा जाता है.
- रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं.
- सावन में रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है.
- रुद्राभिषेक करने से मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं.
- रुद्राभिषेक कोई भी कष्ट या ग्रहों की पीड़ा दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है.
कौन से शिवलिंग पर करें रुद्राभिषेक?
अलग –अलग शिवलिंग और स्थानों पर रुद्राभिषेक करने का फल भी अलग होता है. आइए हम आपको बताते हैं कि कौन से शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना ज्यादा फलदायी होता है...
- मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना बहुत उत्तम होता है.
- इसके अलावा घर में स्थापित शिवलिंग पर भी अभिषेक कर सकते हैं.
- रुद्राभिषेक घर से ज्यादा मंदिर में, नदी तट पर और सबसे ज्यादा पर्वतों पर फलदायी होता है.
- शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते हैं.
अलग-अलग वस्तुओं से अभिषेक करने का फल
रुद्राभिषेक में मनोकामना के अनुसार अलग-अलग वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है. ज्योतिष मनाते हैं कि जिस वस्तु से रुद्राभिषेक करते हैं उससे जुड़ी मनोकामना ही पूरी होती है तो आइए जानते हैं कि कौन सी वस्तु से रुद्राभिषेक करने से पूरी होगी आपकी मनोकामना...
- घी की धारा से अभिषेक करने से वंश बढ़ता है.
- इक्षुरस से अभिषेक करने से दुर्योग नष्ट होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
- शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने से इंसान विद्वान हो जाता है.
- शहद से अभिषेक करने से पुरानी बीमारियां नष्ट हो जाती हैं.
- गाय के दूध से अभिषेक करने से आरोग्य मिलता है.
- शक्कर मिले जल से अभिषेक करने से संतान प्राप्ति सरल हो जाती हैं.
- भस्म से अभिषेक करने से इंसान को मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- कुछ विशेष परिस्थितियों में तेल से भी शिव जी का अभिषेक होता है.
रुद्राभिषेक कब होता है सबसे उत्तम?
कोई भी धार्मिक काम करने में समय और मुहूर्त का विशेष महत्व होता है. रुद्राभिषेक के लिए भी कुछ उत्तम योग बनते हैं. आइए जानते हैं कि कौन सा समय रुद्राभिषेक करने के लिए सबसे उत्तम होता है...
- रुद्राभिषेक के लिए शिव जी की उपस्थिति देखना बहुत जरूरी है.
- शिव जी का निवास देखे बिना कभी भी रुद्राभिषेक न करें, बुरा प्रभाव होता है.
- शिव जी का निवास तभी देखें जब मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक करना हो.
शिव जी का निवास कब मंगलकारी होता है?
देवों के देव महादेव ब्रह्माण्ड में घूमते रहते हैं. महादेव कभी मां गौरी के साथ होते हैं तो कभी-कभी कैलाश पर विराजते हैं. ज्योतिषाचार्याओं की मानें तो रुद्राभिषेक तभी करना चाहिए जब शिव जी का निवास मंगलकारी हो...
- हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी को शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं.
- हर महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और अमावस्या को भी शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं.
- कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी को महादेव कैलाश पर वास करते हैं.
- शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि को भी महादेव कैलाश पर ही रहते हैं.
- कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी को शिव जी नंदी पर सवार होकर पूरा विश्व भ्रमण करते हैं.
- शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि को भी शिव जी विश्व भ्रमण पर होते हैं.
- रुद्राभिषेक के लिए इन तिथियों में महादेव का निवास मंगलकारी होता है.
शिव जी का निवास कब अनिष्टकारी होता है?
शिव आराधना का सबसे उत्तम तरीका है रुद्राभिषेक लेकिन रुद्राभिषेक करने से पहले शिव के अनिष्‍टकारी निवास का ध्यान रखना बहुत जरूरी है...
- कृष्णपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को भगवान शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं.
- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और पूर्णिमा को भी शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं.
- कृष्ण पक्ष की द्वितीया और नवमी को महादेव देवताओं की समस्याएं सुनते हैं.
- शुक्लपक्ष की तृतीया और दशमी में भी महादेव देवताओं की समस्याएं सुनते हैं.
- कृष्णपक्ष की तृतीया और दशमी को नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं.
- शुक्लपक्ष की चतुर्थी और एकादशी को भी नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं.
- कृष्णपक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी को रुद्र भोजन करते हैं.
- शुक्लपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को भी रुद्र भोजन करते हैं.
- इन तिथियों में मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक नहीं किया जा सकता है.
कब तिथियों का विचार नहीं किया जाता?
कुछ व्रत और त्योहार रुद्राभिषेक के लिए हमेशा शुभ ही होते हैं. उन दिनों में तिथियों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती है...
- शिवरात्री, प्रदोष और सावन के सोमवार को शिव के निवास पर विचार नहीं करते.
- सिद्ध पीठ या ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में भी शिव के निवास पर विचार नहीं करते.
- रुद्राभिषेक के लिए ये स्थान और समय दोनों हमेशा मंगलकारी होते हैं.
शिव कृपा से आपकी सभी मनोकामना जरूर पूरी होंगी तो आपके मन में जैसी कामना हो वैसा ही रुद्राभिषेक करिए और अपने जीवन को शुभ ओर मंगलमय बनाइए.

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

रेल बजट

'प्रभु' ने रेल बजट में क्या-क्या वादे किए?




नई दिल्ली। रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने आज संसद में रेल बजट पेश किया।प्रभु ने रेल किराए और मालभाड़े में कोई बढ़ोतरी नहीं करने का ऐलान करते हुए 4 नई ट्रेनों का ऐलान किया। प्रभु ने 2020 के लिए विजन पेश करते हुए कहा कि रेलवे दूसरे तरीकों से राजस्व जुटाएगी। क्या क्या कहा प्रभु ने पढ़ें- 


# रेलवे किराये में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी
# माल भाड़े में भी कोई इजाफा नहीं
# चार नई ट्रेनों का ऐलान- हमसफर, अंत्योदय, तेजस और उदय एक्सप्रेस
# देश का पहला रेल ऑटो हब चेन्नई में बनेगा
# जापान की मदद से मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर पर काम
# रेलवे की जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराएंगे
# खर्च में कटौती कर कमाई बढ़ा सकते हैं
# 2020 तक रेलों को समय से चलाने का लक्ष्य
# रेलवे में जीरो दुर्घटना का लक्ष्य
# डिजिटल इंडिया मिशन के तहत इस साल ट्रैक मैनेजमेंट सिस्टम की शुरुआत की, जिसमें एसएमएस, ई-मेल के जरिए अलर्ट जारी हो रहे हैं
# दुर्घटनाएं कम करने के लिए दुनिया के प्रमुख रेल संस्थानों, टेक्निकल रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के साथ रिसर्च और विकास साझेदारी शुरू की।
# मौजूदा वर्ष में 820 रोड ओवर ब्रिज/अंडर ब्रिज को पूरा किया और 1,350 पर काम चल रहा है।
# 2015-16 में 350 चौकीदार वाली लेवल क्रॉसिंग बंद की और 1,000 बिना चौकीदार वाले लेवल क्रॉसिंग बंद की।
# कैबिनेट ने पीपीपी मॉडल पर 400 रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास करने का अनुमोदन दिया।
# प्रत्येक सवारी डिब्बे में वरिष्ठ नागरिक कोटे को 50% बढ़ा रहे हैं।
# रेलवे स्टेशनों पर युवा और कारोबारी यात्रियों के लिए वाई-फाई सेवा शुरू की
# महिला सुरक्षा के लिए सवारी डिब्बों में मध्यम भाग को आरक्षित किया गया
# गूगल की साझेदारी से इस साल 100 स्टेशनों और अगले 2 साल में 400 स्टेशनों पर वाई-फाई सेवाओं का प्रस्ताव
# रेलवे स्टेशनों पर पोर्टरों को नई यूनिफॉर्म दी जाएगी।
# दिव्यांगों के लिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग को सुविधाजनक बनाया
# दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर की ऑनलाइन बुकिंग और सभी सवारी डिब्बे ब्रेल इनेबल्ड किए
# वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं के लिए लोअर बर्थ का कोटा बढ़ाया
# इस वित्तीय वर्ष के अंत तक ट्रेनों में 17,000 जैव शौचालय उपलब्ध कराए जाएंगे
# दुनिया का पहला जैव निर्वात शौचालय भारतीय रेल ने तैयार किया और डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस में प्रयोग हो रहा है
# 1780 ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीनें और 225 कैश-क्वाइन और स्मार्ट कार्ड चालित टिकट वेंडिंग मशीनें लगाई गईं
# सोशल मीडिया और आईवीआरएस प्रणाली के जरिए ग्राहकों से मिल रहा फीडबैक।
# आधुनिक साजसज्जा वाले सवारी डिब्बों के साथ नई रेलगाड़ी महामना एक्सप्रेस शुरू की है।
# यात्रियों से इनपुट लेने के लिए रोजाना 1 लाख से ज्यादा फोन किए जाते हैं ।
# रेलवे स्टेशनों पर 2,500 वाटर वेंडिंग मशीनें लगाई गईं।
# 17000 बायो टॉयलेट, 475 स्टेशनों पर अतिरिक्त शौचालय।
# 400 नए स्टेशनों पर वाई फाई की सुविधा।
# जनरल बोगी में भी मोबाइल चार्ज करने की सुविधा।
# वरिष्ठ नागरिकों के लिए हर ट्रेन में 120 सीटें।
# वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोटा 50% बढ़ा
# 17000 नई ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीनें
# रेल सुरक्षा के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग जरूरी
# इस साल 44 नई परियोजनाएं शुरू होंगी
# प्रति मिनट 7200 ई-टिकट देने का लक्ष्य
# बड़े स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे।
# राज्य सरकारों के साथ 6 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर हुए
# संयुक्त उद्यम के लिए 17 राज्यों से सैद्धांतिक अनुमोदन मिला
# कैबिनेट ने रेलवे को राज्य सरकारों के साथ संयुक्त उद्यम की अनुमति दी
# कार्यप्रणाली में कुशलता के लिए आंतरिक लेखा प्रणाली का पुनर्गठन
# हमने ये सुनिश्चित किया है कि परियोजनाएं 6-8 माह के अंदर स्वीकृत हो जाएं, पहले इसमें 2 साल से ज्यादा का वक्त लगता था।
# सभी प्रकार की खरीद ई-प्लेटफॉर्म पर की जा रही है
# कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए सोशल मीडिया भी इस्तेमाल
# हमारा मिशन पूरे कामकाज में 100 प्रतिशत पारदर्शिता सुनिश्चित करना है
# त्रिपुरा की राजधानी अगरतला को बड़ी लाइन नेटवर्क पर लाया गया
# 7 किमी प्रतिदिन की रफ्तार से बड़ी लाइन चालू करने में सफल
# पिछले वर्ष की गई 139 घोषणाओं पर कार्रवाई आरंभ की गई
# भारतीय जीवन बीमा निगम ने अनुकूल शर्तों पर 1.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश की सहमति दी
# 2500 किमी अतिरिक्त बड़ी लाइन चालू करने के लक्ष्य से भी आगे निकल जाएंगे, जो पिछले साल से करीब 30% ज्यादा होगा
# अगले वित्तीय वर्ष में 2,000 किमी का विद्युतीकरण करने का प्रस्ताव
# 2020 तक मालगाड़ियों को टाइम-टेबल के अनुसार चलाने का लक्ष्य
# 2020 तक बिना चौकीदार वाली क्रॉसिंग को खत्म करने का लक्ष्य
# 2020 तक 95 प्रतिशत तक समय पालन का लक्ष्य
# वित्तीय वर्ष 2016-17 में पूंजीगत योजना के लिए 1.21 लाख करोड़ रुपये रखे गए हैं
# हमारा निवेश पिछले वर्ष के औसत का लगभग दोगुना होगा
# आगामी वित्तीय वर्ष में शून्य आधारित बजट प्रक्रिया की अवधारणा अपनाएंगे
# अगले वर्ष तक 1,84,820 करोड़ रुपये का राजस्व जुटा सकेंगे
# 2020 तक ट्रेनों से मल-मूत्र के सीधे डिस्चार्ज को समाप्त करने का लक्ष्य
# 2020 तक स्वर्णिम चतुर्भुज पर सेमी हाईस्पीड ट्रेनें चलाने का लक्ष्य
# 2020 तक मालगाड़ियों की औसत गति 50 किमी/घंटे और मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत गति 80 किमी/घंटे तक करने का लक्ष्य
# ये मेरा बजट नहीं बल्कि आम लोगों का बजट है।
# मैं रेल को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाना चाहता हूं।
# ये बजट देश की नई यात्रा और बदलाव का होगा।
# हम नए स्रोतों के जरिए राजस्व जुटाएंगे, हम अपनी क्षमता बढ़ाएंगे
#नागरिकों को ऐसी रेल सेवा मुहैया कराना है, जिस पर वे गर्व कर सकें
# रेलवे में 1 रुपये के निवेश से पूरी अर्थव्यवस्था में 5 रुपये की वृद्धि हो
बजट पेश करने से पहले सुरेश प्रभु ने कहा कि रेल से लोगों की बहुत सी आशाएं हैं, हमारा बजट इन सभी बातों को ध्यान में रख कर बनाया गया है। सबको पसंद आएगा ऐसी आशा करता हूं।

बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

घड़ी का आविष्कार कब, कैसे और कहाँ?

घड़ी का आविष्कार





घड़ी का इस्तेमाल हम रोज़ करते हैं, सांचोर जालौर से नरेश कुमार पँवार पूछते हैं कि घड़ी का आविष्कार किसने, कब और किस देश में किया?
सूरज की छाया का उपयोग कर समय बताने वाली घड़ियाँ शायद हमने भारत में लंबे समय से देखी हैं. लगभग सवा दो हज़ार साल पहले प्राचीन यूनान यानी ग्रीस में पानी से चलने वाली अलार्म घड़ियाँ हुआ करती थीं जिममें पानी के गिरते स्तर के साथ तय समय बाद घंटी बज जाती थी. लेकिन आधुनिक घड़ी के आविष्कार का मामला कुछ पेचीदा है. घड़ी की मिनट वाली सुई का आविष्कार किया वर्ष 1577 में स्विट्ज़रलैंड के जॉस बर्गी ने अपने एक खगोलशास्त्री मित्र के लिए. उनसे पहले जर्मनी के न्यूरमबर्ग शहर में पीटर हेनलेन ने ऐसी घड़ी बना ली थी जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया सके. लेकिन जिस तरह हम आज हाथ में घड़ी पहनते हैं वैसी पहली घड़ी पहनने वाले आदमी थे जाने माने फ़्राँसीसी गणितज्ञ और दार्शनिक ब्लेज़ पास्कल. ये वही ब्लेज़ पास्कल हैं जिन्हें कैलकुलेटर का आविष्कारक भी माना जाता है. लगभग 1650 के आसपास लोग घड़ी जेब में रखकर घूमते थे, ब्लेज़ पास्कल ने एक रस्सी से इस घड़ी को हथेली में बाँध लिया ताकि वो काम करते समय घड़ी देख सकें, उनके कई साथियों ने उनका मज़ाक भी उड़ाया लेकिन आज हम सब हाथ में घड़ी पहनते हैं.

भारत का इतिहास


भारत का इतिहास  

भारत में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जोसत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।[1]इसके पश्चात एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। हड़प्पा की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: बलूचिस्तानी पहाड़ियों के गाँवों की कुल्ली संस्कृति और राजस्थान तथा पंजाब की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।[2] यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है।



प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

भारतीय इतिहास जानने के स्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-
  1. साहित्यिक साक्ष्य
  2. विदेशी यात्रियों का विवरण
  3. पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य। 
धार्मिक साहित्य
धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।
  • ब्राह्मण ग्रन्थों में -
वेदउपनिषदरामायणमहाभारतपुराणस्मृति ग्रन्थ आते हैं।
  • ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है। 
लौकिक साहित्य
लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है।
धर्म-ग्रन्थ
प्राचीन काल से ही भारत के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है।
ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ
ब्राह्मण धर्म - ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है।
वेद
वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है। यह शब्द संस्कृत के ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना। वेदों के संकलनकर्ता 'कृष्ण द्वैपायन' थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण 'वेदव्यास' की संज्ञा प्राप्त हुई। वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय अर्थात दैवकृत मानते हैं। वेदों की कुल संख्या चार है-
  • ऋग्वेद- यह ऋचाओं का संग्रह है।
  • सामवेद- यह ऋचाओं का संग्रह है।
  • यजुर्वेद- इसमें यागानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है।
  • अथर्ववेद- यह तंत्र-मंत्रों का संग्रह है।

ब्राह्मण ग्रंथ

यज्ञों एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही इस ब्राह्मण ग्रंथ की रचना हुई। यहां पर 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ हैं- यज्ञ अर्थात यज्ञ के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये। ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा प्रस्तुत की गयी है। यह ग्रंथ अधिकतर गद्य में लिखे हुए हैं। इनमें उत्तरकालीन समाज तथा संस्कृति के सम्बन्ध का ज्ञान प्राप्त होता है। प्रत्येक वेद (संहिता) के अपने-अपने ब्राह्मण होते हैं।

आरण्यक

आरयण्कों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों यथा, आत्मा, मृत्यु, जीवन आदि का वर्णन होता है। इन ग्रंथों को आरयण्क इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन ग्रंथों का मनन अरण्य अर्थात वन में किया जाता था। ये ग्रन्थ अरण्यों (जंगलों) में निवास करने वाले सन्न्यासियों के मार्गदर्शन के लिए लिखे गए थै। आरण्यकों में ऐतरेय आरण्यक, शांखायन्त आरण्यक, बृहदारण्यक, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक तथा तवलकार आरण्यक (इसे जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण भी कहते हैं) मुख्य हैं। ऐतरेय तथा शांखायन ऋग्वेद से, बृहदारण्यक शुक्ल यजुर्वेद से, मैत्रायणी उपनिषद आरण्यक कृष्ण यजुर्वेद से तथा तवलकार आरण्यक सामवेद से सम्बद्ध हैं। अथर्ववेद का कोई आरण्यक उपलब्ध नहीं है। आरण्यक ग्रन्थों में प्राण विद्या की महिमा का प्रतिपादन विशेष रूप से मिलता है। इनमें कुछ ऐतिहासिक तथ्य भी हैं, जैसे- तैत्तिरीय आरण्यक में कुरुपंचालकाशीविदेह आदि महाजनपदों का उल्लेख है।

उपनिषद

उपनिषदों की कुल संख्या 108 है। प्रमुख उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक, कौषीतकि, मुण्डक, प्रश्न, मैत्राणीय आदि। लेकिन शंकराचार्य ने जिन 10 उपनिषदों पर स्पना भाष्य लिखा है, उनको प्रमाणिक माना गया है। ये हैं - ईश, केन, माण्डूक्य, मुण्डक, तैत्तिरीय, ऐतरेय, प्रश्न, छान्दोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद। इसके अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौषीतकि उपनिषद भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस प्रकार 103 उपनिषदों में से केवल 13 उपनिषदों को ही प्रामाणिक माना गया है। भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डोपनिषद से लिया गया है। उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें प्रश्नमाण्डूक्यकेनतैत्तिरीयऐतरेयछान्दोग्यबृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषद गद्य में हैं तथाकेनईशकठ और श्वेताश्वतर उपनिषद पद्य में हैं।

वेदांग

वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफ़ी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले'। वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-
1- शिक्षा, 2- कल्प, 3- व्याकरण, 4- निरूक्त, 5- छन्द एवं 6- ज्योतिष
ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
  • धर्मशास्त्र में चार साहित्य आते हैं- 1- धर्म सूत्र, 2- स्मृति, 3- टीका एवं 4- निबन्ध।

स्मृतियाँ

स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः मनुस्मृति (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- नारदपराशरबृहस्पतिकात्यायनगौतम, संवर्त, हरीत, अंगिरा आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के भारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारुचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।

महाकाव्य

'रामायण' एवं 'महाभारत', भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं। यद्यपि इन दोनों महाकाव्यों के रचनाकाल के विषय में काफ़ी विवाद है, फिर भी कुछ उपलब्ध साक्ष्यों के आधर पर इन महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है।

रामायण

रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान संस्कृत भाषा में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- बालकाण्डअयोध्याकाण्डअरण्यकाण्डकिष्किन्धाकाण्डसुन्दरकाण्डयुद्धकाण्ड एवंउत्तराकाण्ड नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथमभारत से बाहर चीन में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।

महाभारत

महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में गुप्त काल में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- आदिसभावनविराटउद्योगभीष्मद्रोणकर्णशल्यसौप्तिकस्त्रीशान्तिअनुशासनअश्वमेधआश्रमवासी,मौसलमहाप्रास्थानिक एवं स्वर्गारोहण में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।

पुराण

प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे। ब्रह्म वैवर्त पुराण में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण 3. विष्णु पुराण 4. वायु पुराण 5. भागवत पुराण 6. नारदीय पुराण, 7. मार्कण्डेय पुराण 8.अग्नि पुराण 9. भविष्य पुराण 10. ब्रह्म वैवर्त पुराण, 11. लिंग पुराण 12. वराह पुराण 13. स्कन्द पुराण 14. वामन पुराण 15. कूर्म पुराण 16. मत्स्य पुराण 17. गरुड़ पुराण और 18. ब्रह्माण्ड पुराण

बौद्ध साहित्य

बौद्ध साहित्य को ‘त्रिपिटक‘ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं-
सुत्तपिटकविनयपिटक और अभिधम्मपिटक
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंजैन साहित्य एवं लौकिक साहित्य

जैन साहित्य

ऐतिहसिक जानकारी हेतु जैन साहित्य भी बौद्ध साहित्य की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे ‘आगम‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।

विदेशियों के विवरण

विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी हमें भारतीय इतिहास की जानकारियाँ मिलती है। इनको तीन भागों में बांट सकते हैं- 
  1. यूनानी-रोमन लेखक
  2. चीनी लेखक
  3. अरबी लेखक

पुरातत्त्व

पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं। इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के ‘बोगजकोई‘ नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - इन्द्र, मित्र, वरुण, नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।

चित्रकला

चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। अजंता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंमूर्ति कला मथुरा एवं अभिलेख

पाषाण काल

समस्त इतिहास को तीन कालों में विभाजित किया जा एकता है-
  1. प्राक्इतिहास या प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Age)
  2. आद्य ऐतिहासिक काल (Proto-historic Age)
  3. ऐतिहासिक काल (Historic Age)

भारत की आदिम (प्रारंभिक) जातियाँ

प्रारम्भिक काल में भारत में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। -
  1. नीग्रिटों
  2. प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाईड
  3. मंगोलायड
  4. भूमध्य सागरीय
  5. पश्चिमी ब्रेकी सेफल
  6. नॉर्डिक

सिंधु घाटी सभ्यता

आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के 'पश्चिमी पंजाब प्रांत' के 'माण्टगोमरी ज़िले' में स्थित 'हरियाणा' के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं। इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में 'जॉन विलियम ब्रन्टम' ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी। खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।

हड़प्पा लिपि

हड़प्पा लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था पर स्पष्टतः यह लिपि 1923 तक प्रकाश में आई। सिंधु लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। यह लिपि चित्रात्मक थी। यह लिपि अभी तक गढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में क़रीब 17 चिह्न हैं।कालीबंगा के उत्खनन से प्राप्त मिट्टी के ठीकरों पर उत्कीर्ण चिह्न अपने पार्श्ववर्ती दाहिने चिह्न को काटते हैं। इसी आधार पर 'ब्रजवासी लाल' ने यह निष्कर्ष निकाला है - 'सैंधव लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर को लिखी जाती थी।'

मृण्मूर्तियां

हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है। इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, बाघ, सुअर, गैंडा, भालू, बन्दरमोर, तोता, बत्तख़ एवंकबूतर की मृणमूर्तियां मिली है। मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओं की खोखली। नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली हैं।

हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषताएं

हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।

हडप्पा जनजीवन

हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी। वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।
  • ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को 'मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन' कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
  • स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा 'मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक' था।
  • मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ों का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।

प्रागैतिहासिक काल

भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग द्रविड़ों का था।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंआर्यआर्यावर्त एवं द्रविड़ निवासी

महाजनपद युग

प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है। सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई. पू. है, जब मक़दूनिया के राजा सिकन्दरने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई. पू. तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत क़ाबुल की घाटी से लेकर गोदावरी तक षोडश जनपदों में विभाजित था।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंब्राह्मणअंधक संघकृष्ण एवं ब्रज

प्राचीन भारत

1200 ई.पू से 240 ई. तक का भारतीय इतिहास, प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। इसके बाद के भारत को मध्यकालीन भारत कहते हैं जिसमें मुख्यतः मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा था।

मौर्य और शुंग

Seealso.jpg इन्हें भी देखेंअशोकअशोक के शिलालेखबुद्धबौद्ध दर्शनबौद्ध धर्मफ़ाह्यानपाटलिपुत्र एवं तक्षशिला

शक, कुषाण और सातवाहन

Seealso.jpg इन्हें भी देखेंराबाटक लेखकुषाणकनिष्ककम्बोजिका एवं कल्हण

गुप्त

मध्यकालीन भारत

तीन साम्राज्यों का युग (8वीं - 10वीं शताब्दी)

सात सौ पचास और एक हज़ार ईस्वी के बीच उत्तर तथा दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ। नौंवीं शताब्दी तक पूर्वी और उत्तरी भारत में पाल साम्राज्य तथा दसवीं शताब्दी तक पश्चिमी तथा उत्तरी भारत में प्रतिहार साम्राज्य शक्तिशाली बने रहे। राष्ट्रकूटों का प्रभाव दक्कन में तो था ही, कई बार उन्होंने उत्तरी और दक्षिण भारत में भी अपना प्रभुत्व क़ायम किया। यद्यपि ये तीनों साम्राज्य आपस में लड़ते रहते थे तथापि इन्होंने एक बड़े भू-भाग में स्थिरता क़ायम रखी और साहित्य तथा कलाओं को प्रोत्साहित किया।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंपाल साम्राज्यराष्ट्रकूट साम्राज्यपृथ्वीराज चौहानगुर्जर प्रतिहार साम्राज्यराजपूत काल एवं चोल साम्राज्य

इस्लाम का प्रवेश

इस बीच 712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। मुहम्मद-इब्न-क़ासिम के नेतृत्व में मुसलमान अरबों ने सिंध पर हमला कर दिया और वहाँ के ब्राह्मण राजा दाहिर को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार इस्लाम के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के हिन्दू राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमले करके पंजाब छीन लिया था और ग़ज़नी के सुल्तान महमूद ने 997 से 1030 ई. के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली, फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्त्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंचंगेज़ ख़ाँमहमूद ग़ज़नवीमुहम्मद बिन क़ासिममुहम्मद ग़ोरीग़ोर के सुल्तानचंदबरदाईपृथ्वीराज रासो एवं क़ुतुबुद्दीन ऐबक

आर्थिक सामाजिक जीवन, शिक्षा तथा धर्म 800 ई. से 1200 ई.

इस काल में भारतीय समाज में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इनमें से एक यह था कि विशिष्ट वर्ग के लोगों की शक्ति बहुत बढ़ी जिन्हें 'सामंत', 'रानक' अथवा 'रौत्त' (राजपूत) आदि पुकारा जाता था। इस काल में भारतीय दस्तकारी तथा खनन कार्य उच्च स्तर का बना रहा तथा कृषि भी उन्नतिशील रही। भारत आने वाले कई अरब यात्रियों ने यहाँ की ज़मीन की उर्वरता और भारतीय किसानों की कुशलता की चर्चा की है। पहले से चली आ रही वर्ण व्यवस्था इस युग में भी क़ायम रही। स्मृतियों के लेखकों ने ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर तो कहा ही, शूद्रों की सामाजिक और धार्मिक अयोग्यता को उचित ठहराने में तो वे पिछले लेखकों से कहीं आगे निकल गए।

दिल्ली सल्तनत

दिल्ली सल्तनत की स्थापना भारतीय इतिहास में युगान्तकारी घटना है। शासन का यह नवीन स्वरूप भारत की पूर्ववर्ती राजव्यवस्थाओं से भिन्न था। इस काल के शासक एवं उनकी प्रशासनिक व्यवस्था एक ऐसे धर्म पर आधारित थी, जो कि साधारण धर्म से भिन्न था। शासकों द्वारा सत्ता के अभूतपूर्व केन्द्रीकरण और कृषक वर्ग के शोषण का भारतीय इतिहास में कोई उदाहरण नहीं मिलता है। दिल्ली सल्तनत का काल 1206 ई. से प्रारम्भ होकर 1562 ई. तक रहा। 320 वर्षों के इस लम्बे काल में भारत में मुस्लिमों का शासन व्याप्त रहा। यह काल स्थापत्य एवं वास्तुकला के लिये भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश

ग़ुलाम वंश दिल्ली में कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा 1206 ई. में स्थापित किया गया था। यह वंश 1290 ई. तक शासन करता रहा। इसका नाम ग़ुलाम वंश इस कारण पड़ा कि इसका संस्थापक और उसके इल्तुतमिश और बलबन जैसे महान उत्तराधिकारी प्रारम्भ में ग़ुलाम अथवा दास थे और बाद में वे दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने में समर्थ हुए।

इल्तुतमिश/अल्तमश

इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का एक प्रमुख शासक था। वंश के संस्थापक ऐबक के बाद वो उन शासकों में से था जिससे दिल्ली सल्तनत की नींव मज़बूत हुई। वह ऐबक का दामाद भी था।

रज़िया सुल्तान

रज़िया का पूरा नाम-रज़िया अल्-दीन (1205 – 1240), सुल्तान जलालत उद-दीन रज़िया था। वह इल्तुतमिश की पुत्री तथा भारत की पहली मुस्लिम शासिका थी।

बलबन का युग

ग़यासुद्दीन बलबन (1266-1286 ई.) इल्बारि जाति का व्यक्ति था, जिसने एक नये राजवंश ‘बलबनी वंश’ की स्थापना की थी। ग़यासुद्दीन बलबन ग़ुलाम वंश का नवाँ सुल्तान था।

ख़िलजी वंश (1290-1320 ई.)

ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है। इतिहासकार 'निज़ामुद्दीन अहमद' ने ख़िलजी को चंगेज़ ख़ाँ का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, 'बरनी' ने उसे तुर्कों से अलग एवं 'फ़खरुद्दीन' ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है। फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है। चूंकि भारत आने से पूर्व ही यह जाति अफ़ग़ानिस्तान के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था। सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया। मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश के अन्तिम सुल्तान शमसुद्दीन क्यूमर्स की हत्या के बाद ही जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

तुग़लक़ वंश (1320-1414)

ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1412 तक राज किया। इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1324-51) और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351-87)।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंसैयद वंशलोदी वंशतैमूर लंगविजय नगर साम्राज्यबहमनी वंशचंगेज़ ख़ाँअलाउद्दीन ख़िलजीकबीर एवं भक्ति आन्दोलन

मुग़ल

दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई. में बाबर ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने पानीपत की पहली लड़ाई में अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को हरा दिया और मुग़ल वंश की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया। तीसरा मुग़लबादशाह अकबर असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।

बाबर (1526 - 1530)

मुग़ल वंश का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। बाबर का पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा', 'फ़रग़ना' का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना।

हुमायूँ (1530-1540 और 1555-1556)

'नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ' का जन्म बाबर की पत्नी ‘माहम बेगम’ के गर्भ से 6 मार्च, 1508 ई. को काबुल में हुआ था। बाबर के 4 पुत्रों- हुमायूँकामरानअस्करी और हिन्दाल में हुमायूँ सबसे बड़ा था। बाबर ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।

शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी के बचपन का नाम 'फ़रीद ख़ाँ' था। वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई.) में अपने पिता 'हसन ख़ाँ' की अफ़ग़ान पत्‍नी से उत्पन्न था। उसका पिता हसन, बिहार के सासाराम का ज़मींदार था।

अकबर (1556 1605)

अकबर महान ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से जज़िया उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ़ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंअकबरनामाअबुल फ़ज़लतानसेनबीरबलरहीम एवं टोडरमल

जहाँगीर (1605 - 1627)

'नूरुद्दीन सलीम जहाँगीर' का जन्म फ़तेहपुर सीकरी में स्थित ‘शेख़ सलीम चिश्ती’ की कुटिया में राजा भारमल की बेटी ‘मरीयम-उज़्-ज़मानी’ के गर्भ से 30 अगस्त, 1569 ई. को हुआ था।अकबर सलीम को ‘शेख़ू बाबा’ कहा करता था। सलीम का मुख्य शिक्षक अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था।

शाहजहाँ (1627 - 1658)

शाहजहाँ का जन्म जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की पुत्री 'जगत गोसाई' (जोधाबाई) के गर्भ से 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में हुआ था। उसका बचपन का नाम ख़ुर्रम था। ख़ुर्रम जहाँगीरका छोटा पुत्र था, जो छल−बल से अपने पिता का उत्तराधिकारी हुआ था।

औरंगज़ेब (1658 - 1707)

'मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब' का जन्म 4 नवम्बर, 1618 ई. में गुजरात के ‘दोहद’ नामक स्थान पर मुमताज़ के गर्भ से हुआ था। औरंगज़ेब के बचपन का अधिकांश समय नूरजहाँ के पास बीता था।

बहादुर शाह ज़फ़र (1837- 1858)

बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्तूबर सन् 1775 ई. को दिल्ली में हुआ था। बहादुर शाह ज़फ़र मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-58 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंहेमूताजमहलफ़तेहपुर सीकरी एवं चित्रकला मुग़ल शैली

आधुनिक काल

मराठा

राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य कन्दहार से आसाम की सीमा तक तथा हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण में अहमदनगर तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र जहाँगीरजहाँ पौत्र शाहजहाँ के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण कराया, परन्तु कन्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु औरंगज़ेब ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ़ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, बुंदेलखण्ड तथा पंजाब के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंशिवाजीतानाजीअहिल्याबाई होल्करजाटों का इतिहासवास्को द गामाअंग्रेज़ एवं सिपाही क्रांति 1857

ईस्ट इंडिया कम्पनी

अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी नेमाहेपांडिचेरी तथा चंद्रानगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों को भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई. में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में कर्नाटक की दूसरी लड़ाई छेड़ी।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंमैसूर युद्धटीपू सुल्तानपानीपत युद्धरेग्युलेटिंग एक्ट एवं गवर्नर-जनरल

गवर्नर-जनरलों का समय

कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। मैसूर के साथ चार लड़ाइयाँ, मराठों के साथ तीन, बर्मा (म्यांमार) तथा सिखों के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

इस काल में सती प्रथा का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लॉर्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा।
Seealso.jpg इन्हें भी देखेंझांसी की रानी लक्ष्मीबाईतात्या टोपेराजा राममोहन रायसती प्रथा एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

असहयोग और सत्याग्रह

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कुछ सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे मोहनदास करमचंद गाँधी के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये रौलट एक्ट जैसे दमनकारी क़ानूनों तथा जलियाँवाला बाग़हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक मेंऊधमसिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ चला दीं। जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई। चंद्रशेखर आज़ादराजगुरुसुखदेव और भगतसिंह जैसे महान क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए। कांग्रेस ने 1920 ई. में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह असहयोग आंदोलन को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया।

भारत का विभाजन


कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों के लिये भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई. में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय लॉर्ड वेवेल अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुख्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई. में लॉर्ड वेवेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।






टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऊपर जायें देखें: शोध ग्रंथ वेल्स, स्पेन्सर (2002) अ जेनेटिक ओडिसी (अंग्रेज़ी)। प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी प्रॅस, न्यू जर्सी, सं.रा.अमरीका। ISBN 0-691-11532-X
  2. ऊपर जायें पुस्तक 'भारत का इतिहास' रोमिला थापर) पृष्ठ संख्या-19