मंगलवार, 29 नवंबर 2016

कुछ कुकिंग टिप्‍स जो आएंगी आपके काम





  • इडली नर्म बनें इसके लिए इडली के बैटर में थोड़ा-सा साबूदाना और उड़द दाल पीसकर डालें। अंतर आपको आसानी से दिखाई देगा।


  • दही से बनी सभी सब्जियों में नमक तभी डालें जब तक सब्जियों में उबाल न आ जाए। पहले से नमक डालने पर दही से बनी सब्जियां फट जाती हैं।


  • रायता बनाने के दौरान उसमें नमक नहीं डालें बल्कि सर्व करते समय डालें। इससे रायता खट्टा नहीं लगेगा।


  • मूंग, मोठ या फिर चने को पानी में गलाने के बाद उसे अंकुरित करने के लिए महीन कपड़े में बांध्ाकर फ्रिज में रख दें। इससे उसमें पानी में पड़े रहने जैसी स्मेल नहीं आएगी।


  • मिर्च के डिब्बे में थोड़ी-सी हींग डालने से मिर्च लंबे समय तक खराब नहीं होगी।


  • चीनी के डिब्बे में पांच लौंग डाल दीजिए इससे उसमें चींटियां नहीं आएंगी।


  • आलू के पराठे बनाते समय आलू के मिश्रण में थोड़ी-सी कसूरी मैथी डालना न भूलें। इससे पराठे इतने स्वादिष्ट बनेंगे कि हर कोई ज्यादा खाना चाहेगा।


  • पनीर को ब्लोटिंग पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखने से यह अधिक देर तक ताजा रहेगा।


  • मैथी की कड़वाहट हटाने के लिए उसमें थोड़ा-सा नमक डालकर उसे थोड़ी देर के लिए अलग रख दें। इसके बाद उसे बनाएं, कड़वापन चला जाएगा।


  • फूलगोभी पकाने पर उसका रंग चला जाता है। ऐसा न हो इसके लिए फूलगोभी की सब्जी में एक टीस्पून दूध अथवा सिरका डालें। sourse -naidunia
  • सोमवार, 28 नवंबर 2016

    शादी करवाने के लिए , लड़कों को लड़कियों से खाने पड़ते है डंडे


    जोधपुर। बरसाने की बेंतमार होली बारे में तो आपने काफी सुना होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे उत्सव के बारें में बताने जा रहे हैं जिसके बारें में पहले शायद ही आपने सुना या पढ़ा होगा। यह उत्सव राजस्थान के मारवाड़ प्रान्त में मनाया जाता है। इसे 'धींगा गवर' के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव की सबसे अनोखी परंपरा यह है कि यहां लड़कियां कुंवारे लड़कों को दौड़ा-दौड़ाकर डंडे मारती हैं। यहां प्रचलित प्रथा के अनुसार इसमें अगर किसी लड़के के वह डंडा पड़ जाता है तो उसकी शादी होना पक्का समझा जाने लगता है। इस प्रान्त में यह उत्सव बेंतमार गणगौर के रूप में प्रसिद्ध है।
    80-100 वर्ष पहले इस क्षेत्र में एक किवंदती प्रचलित थी कि कोई भी पुरुष 'धींगा गवरÓ के दर्शन नहीं करता था। दर्शन नहीं करने के पीछे लोगों में यह धारणा थी कि यदि कोई भी धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। फिर धीरे सुहागिने औरत 'धींगा गवर' की पूजा करने लगी। ये औरते आधी रात को हाथ में बेंत या डंडा लेकर गवर के साथ निकलती थी। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती।
    बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारते हुए चलती थी ताकि रास्ते में आने वाले पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय वे किसी गली, घर या चबूतरी की ओट लेकर छुप जाए। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत (डंडा) की मार पड़ेगी उसका जल्दी ही विवाह हो जाएगा। इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगा और धीरे इस एरिये में यह उत्सव काफी फेमस हो गया। आपको बता दें गवर माता को पार्वती का रूप माना जाता है। वहीं ईसर शिव के प्रतीक समझा जाता है। होते हैं। इसका पूजन सुहागिनें अपने इसी जन्म के पति की सुखद दीर्घायु के लिए करती है, जबकि धींगागवर का पूजन अगले जन्म में उत्तम जीवन साथी मिलने की कामना के साथ किया जाता है। धींगा गवर के पूजन में ये भी मान्यता है कि इसी सुहागिनों के साथ साथ कुंवारी कन्याएं और विधवाएं भी कर सकती है। चूंकि पूजा का महात्म्य अगले जन्म के लिए कामना करना होता है, इसलिए कुंवारी कन्याएं भी इसी उद्देश्य से और विधवा महिलाएं भी इस प्रार्थना के साथ पूजा करती हैं। धींगा गवर की पूजा विशेष रूप से मारवाड़ क्षेत्र में ही की जाती है। जोधपुर, नागौर और बीकानेर में धींगा गवर का उत्सव मनाया जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार ईसर एवं गवर शिव और पार्वती के प्रतीक हैं, जबकि धींगा गवर को ईसर की दूसरी पत्नी के रूप में मान्यता मिली हुई है। किवदंती के अनुसार धींगा गवर मौलिक रूप से एक भीलणी थी, जिसके पति का निधन उसकी यौवनावस्था में ही हो गया था और वो ईसर के नाते आ गई थी। इसलिए धींगा गवर चूंकि विधवा हो गई और उसे ईश्वर की कृपा से पुन: ईसर जैसे पति मिल गए, इसी तथ्य के मद्देनजर विधवाओं को भी इस त्योहार पर पूजन करने की छूट मिल गई थी।
    Source-patrika

    शनिवार, 26 नवंबर 2016

    दूध के साथ भूलकर भी न खाएं ये चीजें, बन जाएंगी जहर


    ये तो सभी जानते ही हैं कि दूध में बहुत से पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमारी सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। लेकिन दूध के साथ जो चीजें हम खा रहे हैं इन सब का हमारे शरीर में क्या असर पड़ता है इससे ज्यादातर लोग अंजान हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि दूध के साथ आपको किन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।


    - दूध के साथ दही कभी नहीं खानी चाहिए। इन्हें साथ खाने से एसिडिटी, गैस और उल्टी की समस्या हो सकती है। दही खाने के करीब एक से डेढ़ घंटे बाद दूध पीना चाहिए।

    - उड़द की दाल के साथ कभी भी दूध का सेवन ना करें।



    दूध पीने के पहले, बाद में और साथ में कभी फल नहीं खाने चाहिए। अगर आप दूध के साथ अन्नास, संतरे जैसे खट्टे फल खाते हैं तो ये आपको नुकसान पहुंचाते हैं। इससे खाना सही से नहीं पचता और उल्टी की संभावना रहती है।

    इसके अलावा दूध और केला भी नहीं खाना चाहिए क्योंकि दूध और केला दोनों ही कफ बनाता है। दोनों को साथ खाने से कफ तो बढ़ता ही और पाचन पर भी असर पड़ता है। 



    कई लोग नाश्ते में दूध के साथ ब्रेड-बटर लेते हैं लेकिन दूध अपने आप में पूरा आहार है। इन सब चीजों का साथ में सेवन करने से पेट में भारीपन महसूस होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की अधिक मात्रा एक-साथ नहीं लेनी चाहिए। इसलिए दूध को अकेले लेना ही बेहतर है।

    - दूध और मछली को कभी भी साथ में नहीं खाना चाहिए क्योंकि इससे गैस, एलर्जी और त्वचा संबंधित बिमारियां हो सकती हैं।


      दूध को पूरा आहार कहा जाता है। इसमें विटामिन, प्रोटीन, लैक्टॉस, शुगर और मिनरल सभी तत्व पाए जाते हैं। अगर आप दूध के साथ तला-भुना या नमकीन खातें है तो इनका पाचन आसानी से नहीं हो पाता। लगातार इसे खाने से त्वचा के रोग हो सकते हैं।

      - दूध और तिल को कभी साथ नहीं खाना चाहिए।

      Source- amarujala

      शनिवार, 19 नवंबर 2016

      बासी चावलों से होगा कई रोगों का इलाज, कभी ना फेंके इन्हें

      रात के बचे बासी चावलों को लोग फेंक देते हैं। लेकिन ये गलत है। बासी चावल बहुत फायदेमंद हैं। इनमें बहुत सारा फाइबर होता है जो कब्ज और गैस की समस्या को ठीक करता है



      बासी चावलों में कई पोषक तत्व व खनि‍ज पदार्थ होते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद हैं होते हैं। कई शोध भी कहते हैं कि बासी चावल सेहत के लिए लाभदायक होते हैं।  

      चोट लगने या किसी वजह से शरीर में घाव हो जाए तो बासी चावल खाएं, फायदा होगा।

      यदि अल्सर की समस्या है तो सप्ताह में तीन दिन बासी चावलों का सेवन जरूर करें।


      बासी चावल खाने से ऊर्जा मिलती है जिससे दिनभर फुर्ती बनी रहती है।

      बासी चावल शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है क्योंकि इसकी तासीर ठंडी होती है। जो शरीर को कई छोटे-छोटे रोगों से बचाता है।

      अगर चाय या कॉफी की लत हो गई हो और इसे छुड़ाना चाहते हों तो बस सुबह उठकर चावल खाएं, जल्द ही इससे छुटकारा मिल जाएगा।

      Source - amarujala






      गुरुवार, 17 नवंबर 2016

      मूंग पोहा - Moong Poha




      सामग्री (2 लोगो के लिए )
      • ½ कप अंकुरित मूंग
      • 1 कप पोहा (मोटा)
      • 1 बड़ा प्याज़ बारीक कटा हुआ
      • 1 बड़ा टमाटर बारीक कटा हुआ
      • 2 हरी मिर्च बारीक कटी हुई
      • राई ½ चम्मच
      • 1 छोटा टुकड़ा अदरक का कद्दूकस करा हुआ
      • ½ कप मूगंफली (भून के दरदरी कुटी हुई)
      • ½ कप ताजा नारियल कद्दूकस करा हुआ
      • 2 बड़े चम्मच तेल
      • 2 बड़े चम्मच हरी धनिया (बारीक कटी हुई)
      • नमक स्वादानुसार

      विधि
      • पोहा को 2 कप पानी में भिगो दे.
      • एक कढाई में तेल गरम करे, राई डाले राई तड़क जाने के बाद, कटा हुआ प्याज़ डाल के सुनहरा होने तक भुने.
      • फिर अदरक और हरी मिर्च दाल के कुछ सेकंड्स भूने.
      • टमाटर डाल के कुछ देर और पकाए अंकुरित मूंग डाल के 5 मिनट तक ढक के पकाए.
      • मूंग पक जाने के बाद पोहा और नमक मिला दे कुछ देर और भुने.
      • फिर दरदरी कुटी मूंगफली और कद्दूकस करा हुआ नारियल डाले और अच्छे से मिलाये.
      • आंच से उतार के हरी धनिया से सजा के गरमागरम पोहा परोसे.

      Source- kalchul

      मंगलवार, 15 नवंबर 2016

      भगवान शिव के इस मंदिर में चढ़ाई जाती है झाड़ू

      सावन के महीने की शुरुआत हो चुकी है। और इसलिए भक्तगण अलग-अलग तरीकों से भगवान शिव को प्रसन्न करने का ओरयास करते हैं। जहाँ एक ओर भगवान शिव को बेलपत्र और धतूरा चढ़ता है, वहीं यूपी के मुरादाबाद जिले में भगवान शिव का ऐसा मंदिर है, जहाँ भोले भंडारी को झाड़ू चढ़ाई जाती है। जी हाँ, है तो यह चौंकानेवाली बात, पर ये सच है।
      मुरादाबाद जिले में एक गांव है बीहजोई, वहीं पर है भगवान शिव का ये नायाब मंदिर, जहाँ  भगवान शिव का प्राचीन शिवपातालेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भक्त सोना-चांदी नहीं, बल्कि अपने भोलेनाथ को झाड़ू चढाते हैं। भक्तगणों का मानना है कि झाड़ू चढाने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और इससे  त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा मिलता है। भगवान शिव का यह मंदिर पूरे इलाके में प्रसिद्ध है।
      इस मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है। और झाड़ू चढाने की प्रथा भी बहुत पुरानी है। शिवजी को झाड़ू चढाने रोज़ाना लोग घंटों लाइन में खड़े रहते हैं, लेकिन इसके अलावा यह दर्शन करने के लिए सकदों भक्त आते हैं। इस मंदिर में भगवान शिव कोई मूर्ति नहीं, बल्कि एक शिवलिंग ही है। 
      असल में इस मंदिर में झाड़ू चढाने के पीछे एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार  इस गांव में भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो बहुत धनि था। लेकिन उसे तवचा सम्बन्धी एक बड़ा रोग था। वह इस रोग का इलाज करवाने जा रहा था कि अचानक यसे प्यास लगी। वह भगवान के इस मंदिर में पानी पीने आया और तभी वजह झाड़ू मार रहे महंत से टकरा गया। जिसके बाद बिना इलाज ही उसका रोग दूर हो गया। इससे खुश होकर सेठ ने महंत को अशरफियाँ देनी चाहिए। लेकिन महंत ने इसे लेने से इनकार कर दिया। इसके बदले उसने सेठ से यहाँ मंदिर बनवाने की प्रार्थना की।
      इसके बाद इस मंदिर के लिए ये बात कही जाने लगी कि त्वचा सम्बन्धी रोग होने पर यहाँ झाड़ू चढ़ानी चाहिए। जिससे लोगों के रोग दूर हो जाएँगे। और इसलिए श्रद्धालू आज भी यहाँ आकर झाड़ू चढाते हैं।

      Source - india


      महालक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर जहाँ प्रसाद में मिलते हैं सोने के ज़ेवर

      अभी तक आपने लोगों को मंदिर में सोना-चांदी चढ़ाते हुए देखा होगा लेकिन एक ऐसा मंदिर भी हैं जहाँ श्रृद्दालुओं को प्रसाद में सोने के ज़ेवर मिलते हैं। जी हाँ, मध्य प्रदेश के रतलाम में महालक्ष्मी का ऐसा खास मंदिर है जहाँ भक्तों को प्रसाद में सोना दिया जाता है। इस खास प्रसाद को पाने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं और लाइन में लगते हैं। इसी वजह से यहाँ भक्तों की भारी भीड़ जुटी रहती है।
      इस मंदिर में साल के कुछ दिन कुबेर का दरबार लगता है। वैसे तो भक्त पूरे साल यहाँ आते हैं और अपनी श्रृद्धा से सोना-चांदी चढ़ाते हैं। खासकर धनतरेस और दीपावली को महालक्ष्मी के इस मंदिर में खूब सोना चढ़ाया जाता है और मां का श्रृंगार किया जाता है। लेकिन कुबेर दरबार वाले दिन भक्तों को आभूषण और नकदी प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यहाँ चढ़ावे का पूरा हिसाब रखा जाता है।
      मंदिर में इतना सोना चढ़ाने के लिहाज़ से सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम रहते हैं। यहाँ हर तरफ सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और पुलिस भी तैनात रहती है। मान्यता है कि अपनी सामर्थ्य के अनुसार यहाँ सोना-चांदी चढ़ाने से घर का भंडार कभी खाली नहीं रहता। वैसे भी चढ़ाव चढ़ाने वाला मंदिर से खाली हाथ वापस नहीं जाता। प्रसाद में यहां से मिलने वाले आभूषण या नकदी को लोग सँभालकर रखते हैं और कभी खर्च नहीं करते।

      Source- india

      गुरुवार, 10 नवंबर 2016

      भारत में करंसी का इतिहास I History Of Indian Rupee In Hindi



      1. भारत में करंसी का इतिहास 2500 साल पुराना हैं। इसकी शुरूआत एक राजा द्वारा की गई थी। 


      2. अगर आपके पास आधे से ज्यादा (51 फीसदी) फटा हुआ नोट है तो भी आप बैंक में जाकर उसे बदल सकते हैं।
      3. बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डाॅलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया. फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रूपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रूपये की कीमत घटती आ रही हैं।
      4. अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती. लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नही हुआ।
      5. इस समय भारत में 400 करोड़ रूपए के नकली नोट हैं।
      6. सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
      7. हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं, 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।
      8. भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओं में लिखी जाती हैं।
      9. 1₹ में 100 पैसे होगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था। ( सन् 1936 में बना 8 आनें का सिक्का मेरे पास भी हैं. )
      10. RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5₹ की पेपर करंसी छापी थी. जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।

      11. आजादी के बाद पाकिस्तान ने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
      12. भारतीय नोट किसी आम कागज के नही, बल्कि काॅटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनो सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नही सकते।
      13. एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था. 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे. 1 ब्लेड की कीमत 2 रूपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था. इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
      14. आजादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और 1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।

      15. भारतीय नोट पर महात्मा गांधी की जो फोटो छपती हैं वह तब खीँची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
      16. भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपाल में नही चलते।
      17. 500₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था।
      18. भारत में 75, 100 और 1,000₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
      19. 1₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से1,000₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं.
      20. एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0₹ का नोट 5thpillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे

      21. 10₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागतआती हैं.

      22. नोटो पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई(RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।

      23. रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
      24. According to RBI, भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
      25. कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift +$’ के बटन को एक साथ दबावें.
      26. ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
      27. क्या RBI जितना मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं ? ऐसा नही हैं, कि RBI जितनी मर्जी चाहे उतनी
      कीमत के नोट छाप सकती हैं, बल्कि वह सिर्फ 10,000₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
      28. जब हमारे पास मशीन हैं तो हम अनगणित नोट क्यों नही छाप सकते ? हम कितने नोट छाप सकते हैं इसका निर्धारण
      मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
      29. हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं.
      मुंबई – हीरा [◆]
      नोएडा – डाॅट [.]
      हैदराबाद – सितारा [★]
      कोलकाता – कोई निशान नहीं.

      Source- samajikjankari

      बुधवार, 2 नवंबर 2016

      अंजीर कोफ्ता करी Anjeer Kofta Curry

      अंजीर कोफ्ता करी खास अवसर पर बनाई जाने वाली पारंपरिक पंजाबी करी है। अंजीर से स्टफ किये हुये पनीर - आलू के मुलायम कोफ्ते आप सभी को बेहद पसंद आयेंगे।
      आवश्यक सामग्री 
      उबले आलू - 2
      पनीर - 100 ग्राम
      अंजीर - 4 (पानी में भीगे हुए)
      कॉर्न फ्लोर - 2 टेबल स्पून
      नमक - ½ छोटी चम्मच
      काली मिर्च पाउडर - ¼ छोटी चम्मच
      तेल - तलने के लिए और ग्रेवी बनाने के लिए

      ग्रेवी बनाने के लिए सामग्री
      टमाटर - 150 ग्राम टमाटर
      हरी मिर्च - 2
      काजू - 20-25
      हरा धनियां - 2 टेबल स्पून (बारीक कटा हुआ)
      अदरक पेस्ट - 1 छोटी चम्मच
      जीरा -1 छोटी चम्मच
      हल्दी पाउडर - 1/4 छोटी चम्मच
      लाल मिर्च पाउडर - 1/4 छोटी चम्मच
      गरम मसाला - 1/4 छोटी चम्मच
      धनियां पाउडर - 1 छोटी चम्मच
      नमक - स्वादानुसार (1 छोटी चम्मच)

      विधि
      उबले आलूओं को छील लीजिए। एक प्याले में आलू और पनीर को कद्दूकस कर लीजिए। इसमें नमक, काली मिर्च और थोड़ा सा हरा धनियां और कॉर्न फ्लोर डालकर सारी चीजें अच्छी तरह मिक्स कर लीजिये और इसे आटे की तरह गूंथ कर अच्छी तरह मसल-मसल कर चिकना करते हुए तैयार कर लीजिए। अंजीर को छोटे-छोटे टुकडों में काट लीजिए। 

      एक गोले को उठाइये और हाथ पर रख कर उंगली और अंगूठे की सहायता से बड़ा कर लीजिये। अंजीर के 3-4 टुकडे़ गोले के ऊपर रखिये और चारों ओर से स्टफिंग को बंद कर दीजिए। गोले को हाथों से अच्छी तरह गोल करके प्लेट में रख दीजिए. इसी तरह सारे कोफ्ते भर कर तैयार कर लीजिये। 

      कढ़ाई में तेल डाल कर गरम कीजिये. तेल पर्याप्त गरम होने पर 4-5 कोफ्ते गरम तेल में डालिये और गोल्डन ब्राउन होने तक तल कर, निकाल कर प्लेट में रखिये। सारे कोफ्ता इसी तरह तल कर निकाल लीजिये। 

      कोफ्ते के लिये ग्रेवी

      टमाटर, हरी मिर्च और काजू को मिक्सी से बारीक पीस लीजिये. कढाई में बचा तेल निकाल कर केवल 2 टेबल स्पून तेल रहने दीजिए। गरम तेल में जीरा डाल दीजिये. जीरा भूनने पर, हल्दी पाउडर, धनियां पाउडर डाल कर मसाले को थोडा़ सा भून लीजिए। अब इसमें अदरक का पेस्ट और टमाटर, काजू, हरी मिर्च का पेस्ट मसाले में डाल कर तब तक भूनिये जब तक, मसाला तेल न छोड़ने लगे, मसाले में लाल मिर्च पाउडर डाल दीजिए और बीच-बीच में चलाते हुए भूनें। 

      मसाले से तेल अलग होने पर मसाला भून कर तैयार है इसमें 1 कप पानी डाल दीजिए, नमक, गरम मसाला और कटा हरा धनिया डाल कर मिक्स करते हुए एक उबाल आने तक पकाएं। ग्रेवी में उबाल आने के बाद गैस की आंच को धीमा कर दीजिए और ढककर के 3-4 मिनिट पकने दीजिए। 

      ग्रेवी बनकर तैयार है, गैस बंद कर दीजिए और ग्रेवी को प्याले में निकल लीजिए व कोफ्ते डाल दीजिए, उपर से हरा धनियां डाल कर सजाइये। अंजीर कोफ्ता करी बनकर के तैयार है इसे आप चपाती, परांठे, नान, पूरी किसी के भी साथ परोसिये और खाइये।
      Source- amarujala