बुधवार, 31 अगस्त 2016

किचन के कचरे से चमकेगा चेहरा ?

किचन की ऐसी बहुत सी चीजें होती है जो एक बार प्रयोग के बाद बेकार हो जाती है। जैसे नींबू का छिलका, आटे का चोकर आदि। लेकिन थोड़ी सी समझदारी दिखाई जाए तो इनसे चेहरे को निखारा जा सकता है। जानिए कैसे?



चाय के लिए जिन टी बैग्स का प्रयोग होता है वो चाय खत्म होने के बाद बेकार हो जाते हैं और उसे फेंक दिया जाता है। लेकिन इन्हें नही फेंकना चाहिए। नींद ना पूरी होने से आंखों की सूजन और जलन को कम करने के लिए इन टी बैग्स को आंखों पर रखें। इससे आंखों के नीचे के काले घेरे भी खत्म होते हैं।



नींबू के प्रयोग के बाद छिलके को ना फेंके। इससे काली हुई कोहनियों, घुटनों या फिर बगलों को साफ कर सकते हैं। छिलके को कोहनियों पर रगड़े, टैनिंग कम होगी और कालापन भी दूर होगा।



संतरे के छिलके को फेंकने के बजाय उसे अच्छे से सुखा लें और पीस लें। इसका पाउडर बनाकर शहद और हल्दी के साथ फेसपैक में मिलाएं और चेहरे पर लगाएं, ट्रेनिंग दूर होगी।


फ्रीज में ना रखे गूंथा हुआ आटा


चेहरे की पिगमेंटेशन को कम करने के लिए पपीते के छिलके को रगड़ें।


आटा छानने के बाद बचा चोकर सबसे बेहतरीन स्क्रब के तौर पर काम करता है। नहाते समय चोकर में दो चम्मच दूध और नींबू की कुछ बूंदें डालें और इसे चेहरे और शरीर पर लगाएं। ब्लैकहैड्स दूर होंगे और ये बॉडी स्क्रब की तरह काम करेगा।


अंडे के सफेद भाग के बच जाने पर उसे उंगलियों से चेहरे पर लगाएं। सूखने पर धो दें, ये त्वचा को मुलायम बनाता है।

Source - amarujala

सोमवार, 29 अगस्त 2016

राष्ट्रीय खेल दिवस पर निबंध | National Sports Day Essay In Hindi


National Sports Day Essay In Hindi हमारे देश भारत में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता हैं. राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को मनाने का कारण यह हैं कि इस दिन हमारे देश के दिग्गज हॉकी प्लेयर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन आता हैं. मेजर ध्यानचंद ने हमारे देश का नाम खेल में अपने उत्तम प्रदर्शन द्वारा बहुत ऊँचा किया हैं, इसीलिए उनके जन्मदिवस को ही राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता हैं.


राष्ट्रीय खेल दिवस पर निबंध

National Sports Day Essay In Hindi

राष्ट्रीय खेल दिवस मनाने की दिनांक प्रति वर्ष 29 अगस्त को
राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता हैं मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में
खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ध्यानचंद अवार्ड
अन्य सम्मान
  • राष्ट्रीय खेल पुरस्कार [नेशनल स्पोर्ट्स अवार्ड],
  • अर्जुन अवार्ड,
  • राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड,
  • द्रोणाचार्य अवार्ड और
  • अन्य पुरस्कार.
राष्ट्रीय खेल दिवस सभी विद्यालयों, कॉलेज, अन्य शिक्षण संस्थाओं और खेल अकादमियों में मनाया जाता हैं और हमारी जिंदगी में खेल-कूद के महत्व को दर्शाया जाता हैं. इसके साथ ही यह दिन मनाने के पीछे एक उद्देश्य यह भी हैं कि हम अपने देश के युवाओं में खेल को अपना करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर पायें और उनके अंदर ये भावना उत्पन्न कर पायें, कि वे अपने खेल के उम्दा प्रदर्शन के द्वारा खुद की तरक्की तो कर ही सकते हैं, साथ ही साथ उनके अच्छे खेल प्रदर्शन से देश का नाम भी वे ऊँचा करेंगे और राष्ट्रीय गौरव भी बढाएँगे.


मेजर ध्यानचंद के बारे में [About Major Dhyanchand] -:
मेजर ध्यानचंद वह शख्सियत हैं, जिनके जन्मदिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता हैं और मेजर ध्यानचंद का जन्म हुआ था 29 अगस्त, 1905 को. उनका जन्म हमारे देश भारत के इलाहबाद शहर में हुआ था और इस दिन हमें और हमारे देश को महान हॉकी खिलाड़ी मिला. उनमें अपने खेल हॉकी के प्रति अद्वितीय क्षमताएं थी. अगर ये कहा जायें कि उन्होंने अपने खेल के द्वारा देश में हॉकी नामक खेल को एक अलग और खास मुक़ाम दिलाया तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. मेजर ध्यानचंद अपनी हॉकी स्टिक के साथ खेल के मैदान में जैसे कोई जादू करते थे और खेल जीता देते थे, इसलिए उन्हें “हॉकी विज़ार्ड [Hockey Wizard]” का टाइटल भी दिया गया था. उन्होंने अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरुआत सन 1926 में की और उनकी कप्तानी के समय देश को 3 ओलिंपिक गोल्ड मैडल जिताने में मदद की. ये गोल्ड मैडल उन्होंने सन 1928, सन 1932 और सन 1936 में देश को जिताये थे.
यह एक जग जाहिर बात हैं कि जिस समय मेजर ध्यानचंद भारत के लिए हॉकी खेला करते थे, वह समय भारतीय हॉकी प्रदर्शन का और सभी राष्ट्रीय भारतीय खेलों [इंडियन नेशनल स्पोर्ट्स] का भी स्वर्ण युग [Golden Period] था. इस महान खिलाड़ी ने अपने खेल में सन 1948 तक अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, इस समय उनकी आयु 42 वर्ष थी. इसके बाद उन्होंने हॉकी से सन्यास धारण किया था अर्थात् वे रिटायर हो गये. मेजर ध्यानचंद चाहे खेल के मैदान में हो अथवा बाहर, वे हमेशा एक अच्छे इंसान रहें. उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया हैं, जो कि हमारे देश का तीसरा सबसे बड़ा सिविलियन अवार्ड हैं, भारत के राष्ट्रीय अवार्ड के बारे में जानने के लिए पढ़े. इसी के साथ वे ऐसे पहले और अब तक के अकेले ऐसे हॉकी प्लेयर बने, जिसे यह अवार्ड प्राप्त हुआ हैं. सन 1979 में मेजर ध्यानचंद की मृत्यु के बाद भारतीय डाक विभाग [इंडियन पोस्टल सर्विसेस] ने उनके सम्मान में स्टाम्प भी जारी किये थे. दिल्ली के राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम भी बदल कर, उनके नाम पर रखा गया, और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी. ध्यानचंद के जीवन को विस्तार से यहाँ पढ़ें|
राष्ट्रीय खेल दिवस का आयोजन [Celebration of National Sports Day] -:
विभिन्न विद्यालयों द्वारा अपना वार्षिक खेल दिवस [एनुअल स्पोर्ट्स डे] भी राष्ट्रीय खेल दिवस के साथ ही मनाया जाता हैं अर्थात् 29 अगस्त को. विद्यालाओं द्वारा इस प्रकार समान दिन कार्यक्रमों के आयोजन का उद्देश्य यह हैं कि वे आने वाली युवा पीढ़ी को खेल का महत्व बता सकें और इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकें ताकि हमारे देश को एक अच्छा खिलाड़ी प्राप्त हो. इस दिन विद्यालयों में भारत के लिए खेलने वाले अच्छे खिलाड़ियों के संपूर्ण संघर्ष और सफलता के बारे में बताया जाता हैं और उनकी तरह कामयाबी पाने के लिए राह भी दिखाई जाती हैं. इस दिन बहुत से विद्यालय पुरस्कार वितरण समारोह [प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन फंक्शन] भी आयोजित करते हैं. इस प्रकार के आयोजन देश के पंजाब और चंडीगढ़ जैसे क्षेत्रों में होना बहुत ही आम बात हैं.
राष्ट्रीय खेल दिवस को राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े तौर पर मनाया जाता हैं. इसका आयोजन प्रति वर्ष राष्ट्रपति भवन में किया जाता हैं और देश के राष्ट्रपति स्वयं देश के उन खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार [नेशनल स्पोर्ट्स अवार्ड] देते हैं, जिन्होंने अपने खेल के उत्तम प्रदर्शन द्वारा पूरे विश्व में तिरंगे का मान बढ़ा दिया. नेशनल स्पोर्ट्स अवार्ड के अंतर्गत अर्जुन अवार्ड, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड और द्रोणाचार्य अवार्ड, जैसे कई पुरस्कार देकर उन खिलाडियों को सम्मानित किया जाता हैं. इन सभी सम्मानों के साथ “देश का सर्वोच्च खेल सम्मान – ध्यानचंद अवार्ड” भी इसी दिन दिया जाता हैं, जो कि सबसे पहले सन 2002 में दिया गया था.
इस प्रकार हमारे देश भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस [नेशनल स्पोर्ट्स डे] बहुत ही उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं.
Sourece - deepawali

सोमवार, 22 अगस्त 2016

रघुराम राजन की जीवनी | Raghuram Rajan Biography in Hindi

रघुराम राजन की जीवनी

Family Background and info – 3 फ़रवरी 1963 को भोपाल में राजन का जन्म एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ और इनका पूरा नाम है Raghuram Govind Rajan और इनके पिता गोविन्द राजन 1953 बैच के एक आईपीएस अफसर थे और उस एग्जाम में उन्होंने टॉप किया था | राजन अपने चार भाईयों में से तीसरे नंबर पर आते थे | राजन के पिता की 1966 में इंटेलिजेंस ब्यूरो के तरह इंडोनेशिया में पोस्टिंग थी और उसके बाद उन्हें कई जगह भेजा गया जिनमे से आखिर में उनकी जर्मनी पोस्टिंग थी जन्हा पर राजन समेत भाइयों में शुरुआती शिक्षा के तौर पर फ्रेंच स्कूल में पढाई की और बाद में पूरा परिवार 1974 में भारत लौट गया |
Education – 1974 में भारत लौटने के बाद राजन ने दिल्ली के  Delhi Public School, RK Puram में अपनी पढाई की और उसके बाद IIT Delhi में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की | कॉलेज में वो एक मेधावी छात्र थे जिसकी वजह से उन्हें ग्रेजुएट होने के बाद 1985 में बेस्ट आल राउंडर छात्र के तौर पर सम्मानित किया गया | उसके बाद 1987 में उन्होंने IIM अहमदाबाद से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में डिग्री हासिल की और वंहा भी वह गोल्ड मेडलिस्ट ही थे | इसके बाद उन्होंने टाटा को बतौर ट्रेनी के तौर पर ज्वाइन किया लेकिन कुछ ही महीनो बाद वो MIT Sloan School of Management चले गये जन्हा उन्होंने मैनेजमेंट में डोक्ट्रल प्रोग्राम में एडमिशन लिया और पीएचडी प्राप्त की | उन्हें पसंद और शोध के विषय banking, corporate finance, and economic development रहे है |
Career –  Raghuram Rajan के करियर की बात करें तो उन्हें हम एक बेहद योग्य अर्थशास्त्री कह सकते है क्योंकि उन्हें इस क्षेत्र का बहुत सालों का अनुभव रहा है और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के गवर्नर के तौर पर उन्होंने 4 सितम्बर 2013 को उस समय के गवर्नर डी सुब्बाराव सेवानिवृत्ति  के बाद उन्होंने यह पद ग्रहण किया और इस से पहले वो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी रह चुके है | Raghuram Rajan 2003 से 2006 तक अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री और अनुसन्धान निदेशक भी रह चुके है | साथ ही उन्होंने भारत के योजना आयोग द्वारा भारत में वित्तीय सुधार के लिए गठित की गयी कमेटी को लीड करने वाले सदस्य भी रह चुके है यह नवम्बर 2008 का समय था  | इसलिए हम कह सकते है कि आर्थिक जगत में Raghuram Rajan एक जाना पहचाना नाम है | American Finance Association के प्रेसिडेंट के तौर पर भी राजन में 2011 में काम किया है |
Personal Life – राजन की निजी जिन्दगी की बात करें तो उन्होंने  Radhika Puri Rajan से शादी की जिन्हें वो आईआईएम अहमदाबाद में अपनी पढाई के दौरान मिले थे | राधिका अब  University of Chicago Law School में पढ़ाती है | राजन के एक बेटा और एक बेटी है | उनके बड़े भाई अमेरिका एक एक सोलर कम्पनी में काम करते है और उनकी बहन की शादी एक आईएस ऑफिसर से हुई है और वो दिल्ली में फ्रेंच टीचर है |
Interesting facts about Raghuram Rajan – आप रघुराम राजन को चाहे कैसे भी जानते हो आप उन्हें गंभीर अर्थशास्त्री के तौर पर जानते हो या रिज़र्व बैंक के गवर्नर के तौर पर लेकिन फिर भी उनके बारे में कुछ चीजे है जो आप नहीं जानते तो चलिए इसी बारे में जानते है –
  • 1970 में उनके पिता की पोस्टिंग श्रीलंका में तो राजनीतिक उथल पुथल के चलते उन्होंने अपने एक साल के स्कूल को मिस कर दिया था |
  • राजन hindi के मामले में थोड़े कम है क्योंकि उनके पिता की पोस्टिंग शुरू में देश के बाहर ही रही जिसमे इंडोनेशिया , श्रीलंका और बेल्जियम जैसे देश है जिसकी वजह से उन्होंने 7th क्लास में hindi को जानने और पढने का मौका मिला |
  • Raghuram Rajan IIT से ग्रेजुएशन में और बाद में IIM अहमदाबाद में गोल्ड मेडलिस्ट रहे है |
  • उनके छोटे भाई मुकुन्द राजन जो है टाटा ग्रुप के  Chief Ethics Officer के पद पर कार्य कर रहे है |
  • राजन ने राधिका राजन से शादी की है जिन्हें वो तब मिले जब वो IIM अहमदाबाद में पढ़ रहे थे |
  • राजन ने 2005 में एक शोधपत्र प्रस्तुत किया जिसमे आने वाले समय और उस समय के चल रहे वित्तीय जोखिम और तरीके पर चिंता जताई गयी थी लेकिन उस समय उनके इस शोधपत्र को नकारात्मक लिया गया लेकिन बाद में 2008 में आई वैश्विक मंदी ने उन्हें सही साबित कर दिया |
  • 2003 में उन्हें ब्लेक फिशर अवार्ड से नवाजा गया जो उन्हें मिलता है जिनका वितीय सेक्टर में प्रभावी योगदान हो और जो 40 की उम्र से कम हो |
  • राजन खेल के मामले में Tennis and Squash दोनों में बेहतर है | साथ ही उन्हें स्विमिंग का बेहद शौक है |
  • राजन हिंदी में थोड़े कमजोर है लेकिन तमिल और इंग्लिश पर उनकी शानदार पकड़ है | फ्रेंच भी उन्हें थोड़ी बहुत आती है |
  • राजन को सुडोकु और क्विज जैसी चीजे बेहद पसंद है |
  • राजन शराब और स्मोक नहीं करते है साथ ही वो शुद्ध शाकाहारी है |
  • उनका मासिक वेतन करीब 1,98,700 रूपये है |
  • उनका कार्यकाल सितम्बर 2016 में ख़त्म हो रहा है और हाल फ़िलहाल उन्होंने कहा है वो आगे के कार्यकाल को बढाने के पक्ष में नहीं है  और वापिस जाना चाहते है हालाँकि देश को उनकी जब भी जरुरत रहेगी वो उपलब्ध रहेंगे |
  • एक इंटरव्यू में यह सामने आया जब उनकी माँ ने उनके बारे में कुछ राज कहे उनके अनुसार राजन इतने धार्मिक नहीं है और कम ही मंदिर में जाते है | उन्होंने कहा “ और इसकी जरुरत भी नहीं है क्योंकि जो आदमी अच्छा है भगवान् हमेशा उसके साथ ही होते है |”
  • raghuram rajan ने अपने कार्यकाल में NPA (Non-performing asset) को लेकर भी काफी सकारामक काम किये है | साथ ही ऑनलाइन फ्रॉड आदि के बारे में भी समय समय पर चिंता जताते हुए इन्होने बैंकिंग सिस्टम के सुधार पर काफी जोर दिया है |
रघुराम राजन विवाद – असल में राजन के अपने दूसरे कार्यकाल को बढाने की इच्छा के पीछे यह विवाद है जो सुब्रमण्यम स्वामी के ब्यान और प्रधानमंत्री को उनकी भेजी गयी चिट्टी की वजह से उपजा है जिसमे उन्होंने Raghuram Rajan पर आरोप लगाते हुए यह कहा कि “ Raghuram Rajan मानसिक तौर पर पूरी तरह ठीक नहीं है और उन्होंने जानबूझकर भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया है | “ उन्होंने कई तरह के और भी इल्जाम Raghuram Rajan पर लगाये है और उन्हें तत्काल पद से हटाने की भी मांग कर डाली | हालाँकि राजन अपनी यूनिवर्सिटी की दुनिया से तीन साल की छुट्टी पर है और इंटरव्यू के दौरान उन्होंने यह बताया कि वो भी अब दूसरे कार्यकाल के लिए इच्छुक नहीं है और अपनी उसी दुनिया में वापिस जाना चाहते है | उनके जानकारों और समर्थन करने वालों के हिसाब से राजन को जिस तरह से ट्रीट किया गया वो ठीक नहीं है और ना ही सरकार ने उनके पक्ष में कुछ ऐसा किया जिस से विवाद कम होता इसलिए उनका यही फैसला ठीक है |
Sourece - hindibiography

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

कैसे साफ करें जले हुए बर्तन, जानें ऐसे ही घरेलू नुस्खे

किचन के बर्तनों में कुछ भी जल जाए तो उसे छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है। इतनी मेहनत करने के बजाए कुछ आसान टिप्स अपनाकर भी इन बर्तनों को चमका सकते हैं। इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं करना, क्योंकि सभी कुछ किचन में आसानी से मिल जाएगा।


किचन क्लीन टिप्स









Source- bhaskar

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

इन 7 चीजों को दोबारा गर्म करके न खाएं

क्या आप किसी खाने की चीज को बार-बार गर्म करके खाते हैं? यह अच्छी आदत है, लेकिन कुछ चीजें दोबारा गर्म करके खाने से वे सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं। हम बता रहे हैं ऐसी 7 चीजों के बारे में जिन्हें दोबारा गर्म करने से बचना चाहिए


1. आलू आलू को गर्म करने के बाद ठंडा करने के दौरान botulism बैक्टीरिया पनपने लगता है। इससे फूड प्वाइजनिंग हो सकती है। जितनी बार गर्म करेंगे, उतनी बार यह बैक्टीरिया पैदा होगा। गर्म करने पर भी यह खत्म नहीं होता है।



2. पालक इसमें नाइट्रेट की मात्रा काफी होती है। रीहीट करने पर नाइट्रेट, कार्सिनोजेनिक (जहरीला) तत्वों में बदल जाता है।



3. चुकंदर पालक की तरह चुकंदर में भी नाइट्रेट काफी अधिक होते हैं। इसलिए चुकंदर को रीहीट करने से भी सेहत को नुकसान पहुंच सकता है।


4. चिकन फ्रिज में रखे हुए ठंडे चिकन को दोबारा गर्म करने से उसमें मौजूद प्रोटीन का कम्पोजिशन बदल सकता है। इसे खाने से इन-डाइजेशन की प्रॉब्लम हो सकती है।




5. तेल इसे दोबारा गर्म करने से इसमें aldehydes नामक केमिकल निकलता है जो टॉक्सिक होता है। यह केमिकल न्यूरो से संबंधित रोगों व कैंसर के लिए जिम्मेदार होता है।



6. मशरूम इसमें प्रोटीन कम्पोजिशन बहुत ही जटिल होता है। दोबारा गरम करने से इसमें प्रोटीन ऐसे तत्वों में बदल सकते हैं, जिनसे इन्हें पचाने में दिक्कत हो सकती है।



7. अंडे इसे उच्च तापमान पर दोबारा गर्म करने से यह टॉक्सिक हो जाता है। इसका नेगेटिव इफेक्ट डाइजेस्टिव सिस्टम पर हो सकता है।



Source - food bhaskar

बुधवार, 10 अगस्त 2016

रक्षाबंधन


रक्षाबंधन सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पवित्र बंधन जिसे जनमानस में रक्षाबंधन के नाम से सावन मास की पूर्णिमा को भारत में ही नही वरन् नेपाल तथा मॉरिशस में भी बहुत उल्लास एवं धूम-धाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन अर्थात रक्षा की कामना लिए ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टी पर विद्यमान है। इन्द्राणी का इन्द्र के लिए रक्षा कवच रूपी धागा या रानी कर्मवति द्वारा रक्षा का अधिकार लिए पवित्र बंधन का हुमायु को भेजा पैगाम और सम्पूर्ण भारत में बहन को रक्षा का वचन देता भाईयों का प्यार भरा उपहार है, रक्षाबंधन का त्योहार। 


प्राचीन काल से प्रसंग भले ही अलग-अलग हो परंतु प्रत्येक प्रसंग में रक्षा की ज्योति ही प्रज्वलित होती रही है। पुरातन काल में रक्षा की भावना का उद्देश्य लिए ब्राह्मण क्षत्रिय राजाओं को रक्षा सूत्र बांधते थे, जहाँ राजा और ज़मींदार जैसे शक्तिवान एवं धनवान लोग उन्हे सुरक्षा प्रदान करने के साथ जीवन उपयोगी वस्तुएं भी उपहार में दिया करते थे।

हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार राजा इन्द्र पर दानवों ने हमला कर दिया जिसमें राजा इन्द्र की शक्ति कमजोर पङने लगी। तब इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी जिनका शशिकला नाम था, उन्होने ईश्वर के समक्ष तपस्या तथा प्रार्थना की। इन्द्राणी की तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने शशिकला को एक रक्षा सूत्र दिया । इन्द्राणी ने उसे इन्द्र के दाहिने हाँथ में बाँध दिया, इस पवित्र रक्षा सूत्र की वजह से इन्द्र को विजय प्राप्त होती है। जिस दिन ये रक्षासूत्र बांधा गया था उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी। संभवतः इसीलिए रक्षाबंधन का पर्व आज-तक सावन मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है।
पौराणिक कथा का अगर जिक्र करें तो, रक्षाबंधन से जुङा एक और रोचक प्रसंग बहुत महत्वपूर्ण है। एक बार राजा बली अपने यज्ञ तप की शक्ति से स्वर्ग पर आक्रमण करके सभी देवताओं को परास्त कर देते हैं, तो इन्द्र सहित सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और राजा बली से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। तब विष्णु जी वामन अवतार में ब्राह्मण के रूप में राजा बली से भिक्षा मांगने जाते हैं और तीन पग भूमि दान में माँगते हैं। राजा बली उन्हे भूमि देने का वचन देते हैं, तभी वामन रूपी विष्णु जी तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बली को रसातल में भेज देते हैं। रसातल में राजा बली अपनी भक्ती से भगवान विष्णु को प्रसन्न करके उनसे वचन ले लेते हैं कि भगवान विष्णु दिन-रात उनके सामने रहेगें। श्री विष्णु के वापस विष्णुलोक न आने पर परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी सलाह देते हैं कि, आप राजा बली को भाई बनाकर उसको रक्षासूत्र बाँधिये। नारद जी की सलाह अनुसार माता लक्ष्मी बली को रक्षासूत्र बाँधती हैं और उपहार में भगवान विष्णु को माँगकर अपने साथ ले जाती हैं। ये संयोग ही है कि इस दिन भी सावन मास की पूर्णीमा थी। आज भी सभी धार्मिक अनुष्ठानों में यजमान को ब्राह्मण एक मंत्र पढकर रक्षासूत्र बाँधते हैं जिसका अर्थ होता है कि-
जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बली को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं आपको बाँध रहा हुँ, आप अपने वचन से कभी विचलित न होना।
रक्षाबंधन की परंपरा महाभारत में भी प्रचलित थी, जहाँ श्री कृष्ण की सलाह पर सैनिकों और पांडवों को रक्षा सूत्र बाँधा गया था। जब रक्षाबंधन के प्रचलन की बात की जाती है तो रानी कर्मवती द्वारा हुमायु को भेजे रक्षासुत्र को अनदेखा नही किया जा सकता, जिसे मुगल सम्राट ने समझा और निभाया भी।
आपसी सौहार्द तथा भाई-चारे की भावना से ओतप्रोत रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुस्तान में अनेक रूपों में दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरूष सदस्य परस्पर भाई-चारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। राजस्थान में ननंद अपनी भाभी को एक विशेष प्रकार की राखी बाँधती है जिसे लुम्बी कहते हैं। कई जगह बहने भी आपस में राखी बाँध कर एक दूसरे को सुरक्षा को भरोसा देती हैं। इस दिन घर में नाना प्रकार के पकवान और मिठाईयों के बीच घेवर (मिठाई) खाने का भी विशेष महत्व होता। रक्षा सूत्र के साथ अनेक प्रान्तों में इस पर्व को कुछ अलग ही अंदाज में मनाते हैं। महाराष्ट्र में ये त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से प्रचलित है। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उङिसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनी अवित्तम कहते हैं। कई स्थानो पर इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। रक्षाबंधन के इस पावन पर्व का महत्तव इसलिए और अधिक हो जाता है क्योकि इसी दिन अमरनाथ की यात्रा सम्पूर्ण होती है, जिसकी शुरुवात गुरु पूर्णिमा से होती है।
रविन्द्रनाथ टैगोर ने तो, रक्षाबंधन के त्योहार को स्वतंत्रता के घागे में पिरोया। उनका कहना था कि, राखी केवल भाई-बहन का त्योहार नही है अपितु ये इंसामियत का पर्व है, भाई-चारे का पर्व है। जहाँ जातिय और धार्मिक भेद-भाव भूलकर हर कोई एक दूसरे की रक्षा कामना हेतु वचन देता है और रक्षा सुत्र में बँध जाता है। जहाँ भारत माता के पुत्र आपसी भेद-भाव भूलकर भारत माता की स्वतंत्रता और उसके उत्थान के लिए मिलजुल कर प्रयास करते।
रक्षा के नजरिये से देखें तो, राखी का ये त्योहार देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा तथा लोगों के हितों की रक्षा के लिए बाँधा जाने वाला महापर्व है। जिसे धार्मिक भावना से बढकर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने में किसी को आपत्ति नही होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में बहने सीमा पर तैनात सैनिकों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं स्वंय की सुरक्षा के साथ उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। हमारे देश में राष्ट्रपति भवन में तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में भी रक्षाबंधन का आयोजन बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को तो अक्सर कई लोगों ने देखा होगा बच्चों से राखी बँधवाते।
रक्षाबंधन एक ऐसा इकलौता त्योहार है जिसके लिए हमारे राष्ट्रीय डाकघर में एक विशेष लिफाफे को बहनों के लिए जारी किया गया है। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है। रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, रक्षा की कामना लिये भाई-चारे और सदभावना का ये धार्मिक पर्व सामाजिक रंग के धागे से बंधा हुआ है। जहाँ लोग जातिय और धार्मिक बंधन भूलकर एक रक्षासूत्र में बंध जाते हैं।
“कच्चे धागे से बनी पक्की डोर है राखी।
प्यार और मिठी शरारतों के साथ, बहन की रक्षा का अधिकार है राखी।
जात-पात , भेद-भाव को मिटाती, एकता का पाठ है राखी।
भाई-बहन के विश्वास और ज़जबात का पवित्र रूप है राखी।“
रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई
धन्यवाद

Sourece-achhikhabar