गुरुवार, 15 नवंबर 2018

फ्लिपकार्ट की कहानी - जय-वीरू

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फ्लिपकार्ट के जय-वीरू


भारतीय स्टार्टअप की दुनिया में जय-वीरू कहलाने वाले बिन्नी बंसल और सचिन बंसल कुछ ही सालों में कॉलेजमेट से सहकर्मी और फिर बिजनेस पार्टनर बन गए। बिन्नी बंसल चंडीगढ़ के रहने वाले हैं। उनके पिता एक बैंक के चीफ मैनेजर रहे हैं और मां भी किसी सरकारी नौकरी में हैं। उन्होंने आईआईटी, दिल्ली से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है।

कॉलेज से निकले किसी भी नौजवान की तरह वो एक अदद नौकरी चाहते थे जो पढ़ाई को 'सफल' बना सके। उन्होंने गूगल में भी नौकरी की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए। गूगल से उन्हें दो बार खाली हाथ लौटना पड़ा।

फिर भी उनकी कोशिशें काम आईं और एक बड़ी ऑनलाइन रिटेलर कंपनी अमेजन में उन्हें नौकरी मिल गई। अमेजन में ही वह अपने पुराने दोस्त सचिन बंसल से मिले। यहां ध्यान रखना जरूरी है कि बिन्नी और सचिन दोस्त हैं, भाई नहीं। सचिन बंसल भी आईआईटी, दिल्ली में कंप्यूटर साइंस के स्टूडेंट रहे हैं और उन्होंने बिन्नी से एक बैच पहले एडमिशन लिया था।

अमेजन में साथ काम करते हुए दोनों को खुद के स्टार्टअप का खयाल आया। दोनों में से किसी को कारोबार का अनुभव नहीं था लेकिन उनके पास एक आइडिया जरूर था। दोनों ने कुछ हिम्मत दिखाई और नौकरी छोड़ दी।

पहले सचिन बंसल और फिर कुछ समय बाद बिन्नी बंसल अमेजन से अलग हो गए। बिन्नी ने सिर्फ नौ महीने ही अमेजन में नौकरी की। दोनों को ऑनलाइन रिटेल का अनुभव था लेकिन भारत में ये आइडिया पूरी तरह पांव नहीं पसार सका था। ऑनलाइन रिटेलिंग अपने शुरुआती दौर में थी और इस क्षेत्र में दूसरी कंपनियां भी काम कर रही थीं।

खुद ही बने मालिक और कर्मचारी

बिन्नी और सचिन बंसल ने साल 2007 में फ्लिपकार्ट की शुरुआत की और पहले सिर्फ किताबें बेचने का फैसला किया। दोनों ने 4 लाख रुपये पूंजी के साथ कंपनी शुरू की। शुरुआती काम था किताबों की होम डिलिवरी। वो मालिक भी खुद थे और कर्मचारी भी।

बिन्नी और सचिन बंसल खुद किताबें खरीदते और वेबसाइट पर आए ऑडर्स पर अपने स्कूटर से डिलीवरी करते। कंपनी के पास प्रचार के भी खास साधन नहीं थे इसलिए दोनों बुक स्टोर्स के पास जाकर अपनी कंपनी के पर्चे भी दिया करते थे।

धीरे-धीरे कंपनी ने कदम बढाने शुरू किए। इसके बाद दोनों ने साल 2008 में बैंगलुरू में एक फ्लैट और दो कंप्यूटर सिस्टम के साथ अपना ऑफिस खोला। अब उन्हें हर दिन करीब 100 ऑर्डर मिलने लगे।

इसके बाद फ्लिपकार्ट ने बेंगलुरू में सोशल बुक डिस्कवरी सर्विस 'वीरीड' और 'लुलु डॉटकॉम' को खरीद लिया। साल 2011 में फ्लिपकार्ट ने कई और कंपनियां खरीदीं जिनमें बॉलीवुड पोर्टल चकपक की डिजिटल कंटेट लाइब्रेरी भी शामिल थी।

कैश ऑन डिलिवरी ने किया कमाल

ऑनलाइन सामान लेते वक्त कई लोगों के मन में कई तरह की आशंकाएं थीं। सामान की गुणवत्ता से लेकर उसकी डिलिवरी की टाइमिंग तक। ये सब सोचते हुए लोग ऑनलाइन पेमेंट करने की बजाय कैश ऑन डिलिवरी का सुरक्षित विकल्प अपनाते हैं।

लेकिन, फ्लिपकार्ट ने इसी मुश्किल को मौके में बदल लिया। बिन्नी और सचिन बंसल पहली बार भारत में कैश ऑन डिलिवरी का विकल्प लेकर आए। इससे लोगों को अपना पैसा सुरक्षित महसूस हुआ और कंपनी पर भरोसा भी बढ़ता गया। साल 2008-09 में फ्लिपकार्ट ने 4 करोड़ रुपये की बिक्री कर दी। इसके बाद निवेशक भी इस कंपनी की ओर आकर्षित हुए।

बिन्नी और सचिन बंसल मानते हैं कि ऑनलाइन रिटेल में कस्टमर सर्विस बहुत बड़ा फैक्टर है। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता को दिए गए इंटरव्यू में सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने कहा था कि वो कंस्टमर सर्विस टीम के साथ दो-दो दिन बिताते हैं और उनकी सुझावों व शिकायतों पर काम करते हैं।

वहीं, कंपनी ने सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन पर भी काम किया। इसका मतलब ये है कि जब कोई किताब खरीदने के लिए उसका नाम किसी सर्च इंजन में डालता तो सबसे ऊपर फ्लिपकार्ट का नाम आता। इस कारण कंपनी को विज्ञापन भी मिलने लगे।

निवेश हर नई कंपनी के लिए बड़ी जरूरत होती है। शुरुआती दौर फ्लिपकार्ट के लिए भी मुश्किलों भरा रहा। आगे चलकर कंपनी में साल 2009 में ऐसेल इंडिया ने 10 लाख डॉलर का निवेश किया जो साल 2010 में एक करोड़ डॉलर पहुंच गया।

इसके बाद 2011 में फ्लिपकार्ट को एक और बड़ा निवेशक टाइगर ग्लोब मिला जिसने दो करोड़ डॉलर का निवेश किया। ऐसेल इंडिया और टाइगर ग्लोब लगातार फ्लिपकार्ट के साथ जुड़े रहे। वेबसाइट चल निकली तो किताबों के अलावा फर्नीचर, कपड़े, असेसरीज, इलेक्ट्रॉनिक्स और गैजेट जैसे सामान भी बेचे जाने लगे। ई-कॉमर्स का बाजार बढ़ने के साथ फ्लिपकार्ट को दूसरी कंपनियों से चुनौती मिलने लगी थी। इसी को देखते हुए उन्होंने कुछ ऑनलाइन रिटेल वेबसाइट को खरीदा।

फ्लिपकार्ट ने 2014 में मिंत्रा और 2015 में जबॉन्ग को खरीद लिया। कंपनी स्नैपडील को भी खरीदना चाहती थी लेकिन बात नहीं बन पाई। लेकिन, मार्च 2018 में ही वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट की 77 प्रतिशत हिस्सेदारी 16 अरब डॉलर में खरीद ली।

दरअसल, कंपनी को अमेजन के भारत में आने के साथ ही चुनौती मिलनी शुरू हो गई थी। इस प्रतिस्पर्धा में उन्हें काफी निवेश करना पड़ रहा था। हालांकि, वॉलमार्ट के साथ अमेजन भी फ्लिपकार्ट को खरीदने की रेस में शामिल थी लेकिन वॉलमार्ट आगे रही। मार्च 2018 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष में कंपनी ने 7।5 अरब डॉलर की बिक्री की थी। पिछले साल के मुकबाले उसकी बिक्री में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।

बैक रूम मास्टर माइंड

बिन्नी बंसल को बैक रूम मास्टर माइंड माना जाता है। लंबे समय तक वह मीडिया से भी दूर रहे हैं। अमूमन सचिन बंसल ही मीडिया को डील किया करते थे। बिन्नी कंपनी में पीछे रहकर काम करते रहे और सचिन उसके लीडर के तौर पर सामने रहे। मीडिया में ये भी खबरें थीं कि फ्लिपकार्ट छोड़ने को लेकर सचिन बंसल ज्यादा खुश नहीं थे। इकोनॉमिक्स टाइम्स ने लिखा है कि कंपनी दो सीईओ को नहीं रखना चाहती थी।

वहीं, सचिन बंसल के जाने पर बिन्नी बंसल ने इकोनॉमिक्स टाइम्स से कहा था, ''हमने जिस तरह यह सफर शुरू किया वह अद्भुत था। पिछले 10 साल में जिस चीज ने हमें साथ रखा है वो है एक जैसे मूल्य और ये सुनिश्चित करना कि ग्राहकों के साथ सब कुछ सही हो।''

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