बुधवार, 2 मार्च 2016

धर्म क्या है ?

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धर्म का अर्थ


धर्म को जानने के लिए हमें धर्म का अर्थ जानना पड़ेगा |

मनु कहते है मनु स्मृति में
आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥
अर्थ – अगर किसी मनुष्य में धार्मिक लक्षण नहीं है और उसकी गतिविधी केवल आहार ग्रहण करने, निंद्रा में,भविष्य के भय में अथवा संतान उत्पत्ति में लिप्त है, वह पशु के समान है क्योकि धर्म ही मनुष्य और पशु में भेद करता हैं|

दस लक्षण जो कि धार्मिक मनुष्यों में मिलते हैं

मनु स्मृति में मनु आगे कहते है कि निम्नलिखित गुण धार्मिक मनुष्यों में मिलते हैं|
धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम ॥
  • धृति = प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य न छोड़ना , अपने धर्म के निर्वाह के लिए
  • क्षमा = बिना बदले की भावना लिए किसी को भी क्षमा करने की
  • दमो = मन को नियंत्रित करके मन का स्वामी बनना
  • अस्तेयं = किसी और के द्वारा स्वामित्व वाली वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग नहीं करना, यह चोरी का बहुत व्यापक अर्थ है , यहाँ अगर कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति की वस्तुओ या सेवाओ का उपभोग करने की सोचता भी है तो वह धर्म विरूद्ध आचरण कर रहा हैं
  • शौचं = विचार, शब्द और कार्य में पवित्रता
  • इन्द्रियनिग्रहः= इंद्रियों को नियंत्रित कर के स्वतंत्र होना
  • धी = विवेक जो कि मनुष्य को सही और गलत में अंतर बताता हैं
  • र्विद्या = भौतिक और अध्यात्मिक ज्ञान
  • सत्यं = जीवन के हर क्षेत्र में सत्य का पालन करना, यहाँ मनु यह भी कहते है कि सत्य को प्रमाणित करके ही उसे सत्य माना जाये
  • अक्रोधो = क्रोध का अभाव क्योंकि क्रोध ही आगे हिंसा का कारण होता हैं
यह दस गुण सभी मनुष्यों में मिलते है अन्यथा वह पशु समान है|

वैदिक धर्म एवं दुसरे मतों में अंतर

धर्म को अंग्रेजी में अनुवाद करके religion बोला जाता है जो कि पूर्णतया गलत हैं | अगर हम थोडा जानने की कोशिश करे तो हमें पता चलेगा कि ‘धर्म’ शब्द का अनुवाद संभव नहीं हैं क्योंकि उनके पास कोई शब्द ही नहीं हैं | संछेप में कहे तो ‘religion’ शब्द का अर्थ है कि ‘किसी पारलौकिक शक्ति में विश्वास करना और उसकी पूजा करना’ जबकि धर्म का अर्थ है कि ‘विचार, शब्द और कार्य में धार्मिक गुण होना’ (जिनका हम विवेचन कर चुके हैं )|
धर्म सर्वव्यापी ईश्वर से हैं जो कि मनुष्यमात्र के लिए है और religion या पंथ किसी मनुष्य से हैं जो कि सम्प्रदाय विशेष के लिए होता है |
धर्म की एक और विशेषता हैं कि जो भी ईश्वरकृत हैं वह हमें पहले मिल जाता हैं , उसके बाद हम उसका उपभोग करते है परन्तु जो मानवकृत हैं पहले हमें उस वस्तु विशेष की आवश्यकता होती हैं उसके बाद हम समाधान ढूढ़ते हैं | उदाहरण के लिए जब मानव धरती में आया वह यहाँ रह पाया क्योंकि ईश्वर ने पहले ही धरती की रचना कर दी थी | मनुष्य सूर्य के प्रकाश से देख पा रहा था क्योंकि ईश्वर ने पहले ही सूर्य का सृजन कर दिया था लेकिन रात्रि में अंधकारमय सब कुछ हो जाता था, इसीलिए मनुष्य ने ऊर्जा से बल्ब का निर्माण किया| हम यहाँ यही समझाने का प्रयत्न कर रहे है कि हर religion या पंथ का कोई न कोई संस्थापक हैं जो कि एक मनुष्य है जबकि वैदिक धर्म का कोई संस्थापक नहीं हैं | संछेप में धर्म ईश्वर द्वारा पृथ्वी के हर मनुष्यों को दिया गया हैं जबकि religion या पंथ मनुष्य द्वारा किसी वर्ग विशेष के प्रबन्धन के लिए बनाया गया हैं| उदाहरण से समझते हैं |
  • अगर हम ‘महावीर जैन’ को हटा दे जो कि अंतिम तीर्थकर एवम् जैन मत के संस्थापक थे जिनका जन्म 540 या 599 ईसा पूर्व में हुआ था, तो कोई जैन मत नहीं था | असल में इससे पहले के सारे तीर्थकर जिसमे पहले तीर्थकर ‘रिषभ देव‘ भी हैं सभी आर्य ही थे |
  • अगर हम ‘गौतम बुद्ध‘ को हटा दे , बौद्ध मत के संस्थापक जिनका जन्म 483 या 400 ईसा पूर्व में हुआ था, तो कोई बौद्ध मत नहीं था | यह बात अलग है कि हिन्दू गौतम बुद्ध को पूजते है पर गौतम बुद्ध और बुद्ध देव दोनो अलग हैं |
  • अगर हम ‘ईसा मसीह ‘ को हटा दे , जिनका जन्म 7-2 ईसा पूर्व में हुआ था तो कोई इसाई मत नहीं था |
  • अगर हम ‘मुहम्मद‘ को हटा दे , जिनका जन्म 570 इसाई युग में हुआ था तो कोई इस्लाम मत नहीं था |
  • गुरु गोबिन्द सिंह जी ने वैदिक धर्म की रक्षा के लिए 30 मार्च , 1699 इसाई युग में खाल्सा का निर्माण किया | ‘खाल्सा’ का अर्थ है ‘शुद्ध’ एवम ‘सिख’ का अर्थ हैं ‘शिष्य’| प्रथम ‘पंज प्यारे’ में कोई भी पंजाब से नहीं था |
  • अगर हम ‘श्री राम’ एवं ‘श्री कृष्ण’ को हटा भी दे जिनका जन्म 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व और 18 जुलाई, 3228 ईसा पूर्व में हुआ था, उसके हजारो साल पहले भी वैदिक धर्म समृद्ध था |
क्योंकि वे वैदिक धर्म के संस्थापक नहीं है न ही वे नियम निर्धारित करते हैं | उन्होंने केवल धर्म की , प्राकृतिक नियम जो पहले से थे उनकी पुनर्स्थापना की | इसीलिए वह हमारे महापुरुष हैं और हम उनका सम्मान करते हैं क्योंकि हमारा ये मानना है कि एक मुक्त आत्मा हमारे आत्म-साछात्कर में सहायता कर सकती हैं |
यह वैदिक धर्म को अधिक आकर्षित बना देता है क्योंकि इसका कोई संस्थापक नहीं है और इसके नियम कानून,समाज या दुनिया के किसी भी सदस्य के लिए लागू होते है कारण इसका सिद्धांत हैं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जिसका अर्थ हैं कि ‘पूरी दुनिया मेरा परिवार है’ |

स्रोत

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