सोमवार, 7 मार्च 2016

लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar)

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लता मंगेशकर (अंग्रेज़ीLata Mangeshkar, जन्म: 28 सितम्बर, 1929)भारत की भारत रत्न सम्मानित मशहूर पार्श्वगायिका हैं जिनकी आवाज़ ने छह दशकों से भी ज़्यादा संगीत की दुनिया को सुरों से नवाज़ा है। भारत की 'स्‍वर कोकिला' लता मंगेशकर ने 20 भाषाओं में 30,000 गाने गाये है। उनकी आवाज़ सुनकर कभी किसी की आँखों में आँसू आए, तो कभी सीमा पर खड़े जवानों को सहारा मिला। लता जी आज भी अकेली हैं, उन्होंने स्वयं को पूर्णत: संगीत को समर्पित कर रखा है। लता मंगेशकर जैसी शख़्सियतें विरले ही जन्म लेती हैं।






जीवन परिचय

कुमारी लता दीनानाथ मंगेशकर का जन्म इंदौरमध्यप्रदेश में 28 सितम्बर,1929 को हुआ था। लता मंगेशकर का नाम विश्व के सबसे जाने माने लोगों में आता है। लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर एक कुशल रंगमंचीय गायक थे। दीनानाथ जी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया, जब वे पाँच साल की थी। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। लता 'अमान अली ख़ान साहिब' और बाद में 'अमानत ख़ान' के साथ भी पढ़ीं।

लता मंगेशकर हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज़, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी।
[1] लेकिन पाँच वर्ष की छोटी आयु में ही आपको पहली बार एक नाटक में अभिनय करने का अवसर मिला। शुरुआत अवश्य अभिनय से हुई किंतु आपकी दिलचस्पी तो संगीत में ही थी।


ज़िम्मेदारी

1942 ई. में हृदय-गति के रुक जाने से उनके पिता का देहांत हो गया। तेरह वर्ष की अल्पायु में ही लता जी को परिवार की सारी ज़िम्मेदारियाँ अपने नाज़ुक कंधों पर उठानी पड़ी। अपने परिवार के भरण पोषण के लिये उन्होंने 1942 से 1948 के बीच हिन्दी व मराठी में क़रीबन 8 फ़िल्मों में काम किया। इन में से कुछ के नाम हैं: “पहेली मंगलागौर” 1942, “मांझे बाल” 1944, “गजाभाऊ” 1944, “छिमुकला संसार” 1943, “बडी माँ” 1945, “जीवन यात्रा” 1946, “छत्रपति शिवाजी” 1954 इत्यादि।[1] लेकिन आपकी मंज़िल तो संगीत ही थी और उनके पार्श्व गायन की शुरुआत 1942 की मराठी फ़िल्म "कीती हसाल" से हुई।[2] दुर्भाग्यवश यह गीत काट दिया गया और फ़िल्म में शामिल नहीं हुआ।

जीवन में संघर्ष

सफलता की राह कभी भी आसान नहीं होती है। लता जी को भी अपना स्थान बनाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पडा़। कई संगीतकारों ने तो आपको शुरू-शुरू में पतली आवाज़ के कारण काम देने से साफ़ मना कर दिया था। उस समय की प्रसिद्ध पार्श्व गायिका नूरजहाँ के साथ लता जी की तुलना की जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर आपको काम मिलने लगा।[2]

संगीत में पहला क़दम

  • 1942 में पहली बार गाने का पार्श्व अनुभव
  • 1943 में पहला हिन्दी गाना
  • 1947 में हिन्दी फ़िल्मों में पार्श्व गायन (आपकी सेवा में) के रूप में पहला गीत
  • 1949 में प्रसिद्ध फ़िल्म बरसात, अंदाज, दुलारी और महल
  • 1950 में वह फ़िल्मों में सबसे ताकतवर महिला बनीं

संगीत में प्रशंसा



नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा। मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे। यह गीत लोग कभी नहीं भूल सकते और लता जी का व्यक्तित्व भी इस गीत से झलकता है कि भले ही नाम गुम जाय या चेहरा बदल जाये पर उनकी आवाज़ कोई नहीं भूल सकता। लता जी की अद्भुत कामयाबी ने लता जी को फ़िल्मी जगत की सबसे मज़बूत महिला बना दिया था।[1] लता जी को सर्वाधिक गीत रिकार्ड करने का भी गौरव प्राप्त है। फ़िल्मी गीतों के अतिरिक्त आपने ग़ैरफ़िल्मी गीत भी बहुत खूबी के साथ गाए हैं। लता जी की प्रतिभा को पहचान मिली सन् 1947 में, जब फ़िल्म “आपकी सेवा में” उन्हें एक गीत गाने का मौक़ा मिला। इस गीत के बाद तो आपको फ़िल्म जगत में एक पहचान मिल गयी और एक के बाद एक कई गीत गाने का मौक़ा मिला। इन में से कुछ प्रसिद्ध गीतों का उल्लेख करना यहाँ अप्रासंगिक न होगा। जिसे आपका पहला शाहकार गीत कहा जाता है वह 1949 में गाया गया “आएगा आने वाला”, जिस के बाद आपके प्रशंसकों की संख्या दिनोदिन बढ़ने लगी। इस बीच आपने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया।अनिल बिस्वाससलिल चौधरीशंकर जयकिशनएस. डी. बर्मनआर. डी. बर्मन,नौशादमदनमोहनसी. रामचंद्र इत्यादि सभी संगीतकारों ने आपकी प्रतिभा का लोहा माना। लता जी ने दो आँखें बारह हाथदो बीघा ज़मीनमदर इंडियामुग़ल ए आज़म, आदि महान फ़िल्मों में गाने गाये है। आपने “महल”, “बरसात”, “एक थी लड़की”, “बडी़ बहन” आदि फ़िल्मों में अपनी आवाज़ के जादू से इन फ़िल्मों की लोकप्रियता में चार चाँद लगाए। इस दौरान आपके कुछ प्रसिद्ध गीत थे: “ओ सजना बरखा बहार आई” (परख-1960), “आजा रे परदेसी” (मधुमती-1958), “इतना ना मुझसे तू प्यार बढा़” (छाया- 1961), “अल्ला तेरो नाम”, (हम दोनो-1961), “एहसान तेरा होगा मुझ पर”, (जंगली-1961), “ये समां” (जब जब फूल खिले-1965) इत्यादि।[2]

देश-भक्ति गीत

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे। इस समारोह में लता जी के द्वारा गाए गये गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों” को सुन कर सब लोग भाव-विभोर हो गये थे। पं नेहरू की आँखें भी भर आईं थीं। ऐसा था आपका भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी स्वर। आज भी जब देश-भक्ति के गीतों की बात चलती है तो सब से पहले इसी गीत का उदाहरण दिया जाता है।[2]

आवाज़ का जादू


फ़िल्मकार, संगीतकार आदि के कथन
आपने गीतगज़लभजनसंगीत के हर क्षेत्र में अपनी कला बिखेरी है। गीत चाहे शास्त्रीय संगीत पर आधारित हो, पाश्चात्य धुन पर आधारित हो या फिर लोक धुन की खुशबू में रचा-बसा हो। हर गीत को लता जी अपनी आवाज़ के जादू से एक ऐसे जीवंत रूप में पेश करती हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। लता जी ने युगल गीत भी बहुत खूबी के साथ गाए हैं। मन्ना डेमुहम्मद रफ़ी,किशोर कुमारमहेंद्र कपूर आदि के साथ-साथ आपने दिग्गज शास्त्रीय गायकों पं भीमसेन जोशीपं जसराज इत्यादि के साथ भी मनोहारी युगल-गीत गाए हैं। गज़ल के बादशाह जगजीत सिंह के साथ आपकी एलबम “सजदा” ने लोकप्रियता की बुलंदियों को छुआ।[2]
  • फ़िल्मकार श्याम बेनेगल कहते हैं कि "लता मंगेशकर के जैसा कोई और हुआ ही नहीं है। एक मिस्र की 'उम्मे कुल्सुम' थीं और एक लता हैं।"
  • पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की लता जी के बारे में राय है कि "कभी-कभार ग़लती से ऐसा कलाकार पैदा हो जाता है।"
  • पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख़्तर ने लता मंगेशकर के लिए कई लाजवाब और दिल को छू लेने वाले गीत लिखे हैं। वे कहते हैं, "हमारे पास एक चांद है, एक सूरज है, तो एक लता मंगेशकर भी है।"
  • अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार कहते हैं कि "लता जी की आवाज़ एक रौशनी है, जो सारे आलम के गोशे-गोशे में मौसिकी का उजाला फैलाती है। उनकी आवाज़ एक करिश्मा है।"
  • अमिताभ बच्चन कहते हैं कि "लता मंगेशकर की आवाज़ इस सदी की आवाज़ है।"
  • मशहूर नाटककार विजय तेंडुलकर कहते हैं कि "इस दुनिया में लोग बहुत व्यावहारिक होते हैं, पर लता जी के गीत रोज़ सुनते हैं। उससे किसी का पेट नहीं भरता, लेकिन सुने जा रहे हैं पागलों की तरह।"
  • शास्त्रीय गायक उस्ताद आमिर ख़ान कहते हैं कि "हम शास्त्रीय संगीतकारों को जिसे पूरा करने में तीन से डेढ़ घंटे लगते हैं, लता जी वह तीन मिनट में पूरा कर देती हैं।"
  • प्रसिद्ध संगीतकार एस. डी. बर्मन ने एक बार कहा था कि "जब तक लता है, तब तक हम संगीतकार सुरक्षित हैं।"
  • प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह ने कहा था कि "बीसवीं सदी की तीन बातें याद रखने लायक हैं, एक चांद पर आदमी की जीत, दूसरा बर्लिन की दीवार का टूटना और तीसरा लता का जन्म।"
  • अभिनेता शाहरुख़ ख़ान का कहना है कि "मेरी ख़्वाहिश है कि मैं किसी अभिनेत्री की भूमिका निभाऊं और मुझे पर्दे पर लता जी की आवाज़ पर अभिनय करने का मौका मिले।"[3]

पुरस्कार


फ़िल्म फेयर पुरस्कार (19581962196519691993 और1994)सांगीतिक उपलब्धियों के लिए आपको अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया। संगीत जगत में अविस्मरणीय योगदान के लिए लता जी को
  • राष्ट्रीय पुरस्कार (19721975 और 1990)
  • महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 और 1967)
  • सन 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
  • सन 1989 में उन्हें फ़िल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया।
  • सन 1993 में फ़िल्म फेयर के 'लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
  • सन 1996 में स्क्रीन के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
  • सन 1997 में 'राजीव गांधी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
  • सन 1999 में पद्मविभूषण, एन.टी.आर. और ज़ी सिने के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
  • सन 2000 में आई. आई. ए. एफ.(आइफ़ा) के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
  • सन 2001 में स्टारडस्ट के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार', नूरजहाँ पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • सन 2001 में भारत सरकार ने आपकी उपलब्धियों को सम्मान देते हुए देश के सर्वोच्च पुरस्कार “भारत रत्न” से आपको विभूषित किया।

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