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साल में एक बार विवाह करते है , किन्नर
महाभारत युद्ध में एक समय ऐसा आता है जब पांडवो को अपनी जीत के लिए माँ काली के चरणो में स्वेचिछ्क नर बलि हेतु एक राजकुमार की जरुरत पड़ती है। जब कोई भी राजकुमार आगे नहीं आता है तो अरावन खुद को स्वेचिछ्क नर बलि हेतु प्रस्तुत करता है लेकिन वो शर्त रखता है की वो अविवाहित नहीं मरेगा। इस शर्त के कारण बड़ा संकट उत्त्पन हो जाता है क्योकि कोई भी राजा, यह जानते हुए की अगले दिन उसकी बेटी विधवा हो जायेगी, अरावन से अपनी बेटी की शादी के लिए तैयार नहीं होता है। जब कोई रास्ता नहीं बचता है तो भगवान श्री कृष्ण स्वंय को मोहिनी रूप में बदलकर अरावन से शादी करते है। अगले दिन अरावन स्वंय अपने हाथो से अपना शीश माँ काली के चरणो में अर्पित करता है। अरावन की मृत्यु के पश्चात श्री कृष्ण उसी मोहिनी रूप में काफी देर तक उसकी मृत्यु का विलाप भी करते है। अब चुकी श्री कृष्ण पुरुष होते हुए स्त्री रूप में अरावन से शादी रचाते है इसलिए किन्नर, जो की स्त्री रूप में पुरुष माने जाते है, भी अरावन से एक रात की शादी रचाते है और उन्हें अपना आराध्य देव मानते है।
कूवगम गाँव में हर साल तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा (फुल मून) को 18 दिनों तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत होती है। इस उत्सव में पुरे भारत वर्ष और आस पास के देशों से किन्नर इकठ्ठा होते है। पहले 16 दिन मधुर गीतों पर खूब नाच गाना होता है। किन्नर गोल घेरे बनाकर नाचते गाते है, बीच बीच में ताली बजाते है । और हंसी खुशी शादी की तैयारी करते हैं। चारों तरफ घंटियों की आवाज, उत्साही लोगों की आवाजें गूंज रही होती हैं । चारों तरफ के वातावरण को कपूर और चमेली के फूलों की खूशबू महकाती है । 17 वे दिन पुरोहित दवारा विशेष पूजा होती है और अरावन देवता को नारियल चढाया जाता है । उसके बाद आरावन देवता के सामने मंदिर के पुराहित के दवारा किन्नरों के गले में मंगलसूत्र पहनाया जाता है । जिसे थाली कहा जाता है । फिर अरावन मंदिर में अरावन की मूर्ति से शादी रचाते है । अतिंम दिन यानि 18 वे दिन सारे कूवगम गांव में अरावन की प्रतिमा को घूमाया जाता है और फिर उसे तोड़ दिया जाता है । उसके बाद दुल्हन बने किन्नर अपना मंगलसूत्र तोड़ देते है साथ ही चेहरे पर किए सारे श्रृंगार को भी मिटा देते हैं । और सफेद कपड़े पहन लेते है और जोर जोर से छाती पीटते है और खूब रोते है, जिसे देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखे भी नम हो जाती है और उसके बाद आरावन उत्सव खत्म हो जाता है ।
सौजन्य -: ajabgjab.com
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