बुधवार, 13 जनवरी 2016

प्रभु श्रीराम में बसी है सच्‍चे नायक की छवि

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प्रभु श्रीराम में बसी है सच्‍चे नायक की छवि

 

प्रसिद्ध महाकवि वाल्मीकि ने रामायण की रचना के पूर्व नारद मुनि से पूछा, नायक कौन होता है? क्या इस संसार में कोई ऐसा व्यक्ति है, जो सद्गुणी होने के साथ में शक्तिशाली, सत्यवादी, दृढ़प्रतिज्ञ और करुणावान भी हो? क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो असाधारण चरित्र का धनी, प्रबल उत्साही, सबके कल्याण का इच्छुक, बुद्धिमान, किसी भी संदेह से परे, सक्षम और मनोरम हो? क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो आत्म-संतुष्ट, क्रोध को वश में करने वाला, ईर्ष्यारहित और अतिसाहसी हो? वस्तुत: नारद किसी ऐसे नायक की खोज में थे, जो सभी गुणों से पूर्ण और समस्त दोषों से परे हो।

ज्यों ही नारद मुनि ने यह प्रश्न सुना, त्यों ही वह जान गए कि कौन हैं वह, जिनके स्मरण मात्र से हृदय में अत्यंत आभार और समर्पण का भाव उमड़ आया। नारद अपने अंत:करण में झांकने लगे और खुद को इस प्रश्न का उत्तर उचित ढंग से प्रस्तुत करने के लिए तैयार करने लगे। नारद के हृदय में उनसे संबंधित अनेकानेक विचार उत्पन्न् होने लगे जो सारे गुणों और विशेषताओं के अथाह सागर थे। अपने मानसिक संतुलन को वापस लाने के लिए उन्हें समय चाहिए था। उनके मन में अत्यंत उल्लास उमड़ आया और शरीर का कंपन बढ़ रहा था, हृदय की धड़कन तेज हो उठी और नेत्र में इस नायक की छवि स्थापित हो गई, जिसके कारण अन्य कुछ भी दिखाई देना कठिन हो गया था।

अश्रुपूरित नेत्रों को खोलते हुए नारद ने वाल्मीकि से कहा कि वे जिस नायक की खोज में हैं, जो इन सभी गुणों से पूर्ण हो, वे अन्य कोई नहीं अपितु प्रभु श्रीराम ही हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में किसी नायक की खोज में रहता है, जिसे वह पूज सके और उसका आश्रय ले सके। पूजने का अर्थ है कि उसकी छवि को मन में पूरी तरह से बसा लेना और नित्य अपने आदर्श नायक के पदचिह्नों पर चलने का प्रयत्न करना। परंतु उस नायक की परख करने के लिए जिन गुणों को हम अपने मापदंडों पर रखते हैं, उन पर हमें ध्यान देना चाहिए।

कुछ लोग केवल बाह्य-सौंदर्य को प्रधानता देते हैं, भले ही वह अंदर से कुरूप क्यों न हो, तो कुछ लोग धनाढ्य को प्रधानता देते हैं, भले ही वह हृदय से पूर्णत: निर्धन हो।

-देवकीनंदन दास

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