सोमवार, 11 जनवरी 2016

वीरता

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वीरता


अमर यौवन की आग में जल कर
जो प्रलय पौरुष  तपते  हैं
सूर्य,धरा ,देव,मुनि,जन
उनके सम्मुख जा झुकते हैं 

चढ़ी प्रत्यंचा वीरो की जब जब
शत्रु कम्पित हो  उठते हैं
रौद्र रूप धर वीर ही  तब तब
नव क्रांति सृजन की करते हैं

असुरो के  भय  से जब जब
मानव त्रास हुआ हैं
कृष्ण रूप धर वीरो ने ही तब
तब उसका  संहार किया हैं

सिन्धु के उठते ज्वारो में 
जब दंभ नया उपजा  हैं
लेकर जन्म राम का, वीरो ने
उसका भी उत्थान किया हैं

शौर्य  के इस आदित्य को देखा
जब जब जिस यौवन ने
मातृभूमि, धर्म की रक्षा का
लिया शपथ उसने जीवन में

राष्ट्रधर्म की तपती ज्वाला में
प्राणों की आहुति जो देते हैं
सदियों तक उनके पौरुष ही
कवियों के ह्रदय में  बसते हैं

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