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राजा बीरबलजी का इतिहास
बिरबलजी ने हिंदी, संस्करत और पर्सियन भाषा में अपनी शिक्षा प्राप्त की, बिरबलजी कविताये भी लिखते थे, ज्यादातर उनकी कविताये ब्रज भाषा में होती थी, इस वजह से उन्हें काफी प्रसिद्धि भी मिली थी.
बिरबलजी ने राजा रामचन्द्र के राजपूत अदालत में सेवा की | वहां पर उनका नाम ब्रह्मा कवी था. बिरबलजी की आर्थिक और सामजिक स्तिथि में सूधार उनकी शादी के बाद हुआ , उनकी शादी एक सम्मानित और अमीर परिवार की लड़की से हुई थी |
राजा अकबर से उनकी मुलाकात का कोई प्रमाण सही - सही नहीं मिलता है लेकिन बीरबलजी को अपनी सेव की कुछ ही समय में अकबरजी ने उन्हें कवी बन दिया था (१५५६-१५६२)| बिरबलजी की बढ़ती प्रतिष्ठा ने उन्हें जल्दी ही अकबर के नो रत्ननो में शामिल करलिया गया | बीरबलजी ने एक धार्मिक सलाहकार , सैन्य आंकड़ा और सम्राट के करीबी दोस्त की भूमिका निभाई है , उन्होंने सम्राट की ३० साल सेवा की .
राजा अकबर ने एम धर्म " दिन - ए - इलाही" चलाया था जो प्रथ्वी पर भगवन का प्रतिनधि के रूप स्वीकार किया गया | इसमें हिन्दू और मुस्लिम मान्यताओं का एक संयोजन था आईन-ए-अकबरी ( अकबर के संस्थान) में, यह उल्लेख किया है कि बीरबल अकबर के अलावा अन्य कुछ लोग हैं, जो इसके अनुयायियों थे, उनमे से बीरबल जी केवल एक अकेले हिन्दू थे |
उनकी मौत १५८६ में एक लड़ाई के दौरान हुई थी उनके साथ ८००० सैनिक भी मारे गए थे उस लड़ाई में उनका सरीर भी नहीं मिला था राजा अकबर को उनकी मौत का भुत दुःख हुआ था उनके दुःख में राजा अकबर ने २ दिन तक कुछ भी नहीं खाया पिया था
बीरबल की कहानियो का कोई प्रमाण हमें इतिहास में दिखाई नही देता , स्थानिक लोगो ने अकबर-बीरबल की प्रेरित और प्रासंगिक कहानिया बनानी भी शुरू की. अकबर-बीरबल की ये कहानिया पुरे भारत में धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगी थी.
दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट जरूर करे.....
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